Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • पारिवारिक सम्बन्दो पर कविता, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    इधर देखना ना उधर देखना है

    इधर देखना ना उधर देखना है । अगर देखना है तो घर देखना है । सदा मम्मी पापा को रखना नज़र में । प्यारी सी पत्नी भी रहती है घर मे बच्चों का हर इक पहर देखना है । कभी भूल कर भी उलंघन ना करना । अपनी ही जान का दुश्मन ना बनना । [...] More
  • हरिक साया जलाने सा रहा

    हरिक साया जलाने सा रहा । और वादा बहाने सा रहा । तोड़ कर वो भरोसा यूँ गया, शक्ल अब ना दिखाने सा रहा । आपकी उस मुहब्बत का सिला, बस तमाशा दिखाने सा रहा । बे वफ़ा के लिये हर राबता, एक परदा गिराने सा रहा । चोट ऐसी जगह दे के गया, ज़ख़्म [...] More
  • सावन के लौट आने पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    मेघो ने तरस खाया,

    मेघो ने तरस खाया, पलट के मौसम आया। झीले रीती बाट जो रही, फिर उमंगो का पानी आया। सावन भी सुखा रह गया भादव आधा बीत गया । न जाने क्यूँ बादल लौट आया, पलट के मौसम फिर आया । - हेमलता पालीवाल "हेमा" हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की [...] More
  • गरीब और आमिर लोगो पर कविता, गोविन्द व्यथित

    आज से मैं

    आज से मैं इस कोशिश में लग गया हूँ कि शहरों और गाँवों की समूची बस्तियों को छोटी-बड़ी सभी हस्तियों के साथ ले चलकर बाँस के जंगलों में रख दिया जाये क्योंकि............ सभी मकानों की नीवें खोखली हो गयी हैं कितनी मेहनत के बाद बनी थी घिसुआ की यह झोपड़ी लेकिन........शायद........... आँधी को उसका अस्तित्व [...] More
  • लौट के नहीं आने पर कविता, एकता खान

    यूँ तो एक दिन ख़ाक होना है

    यूँ तो एक दिन ख़ाक होना है जिस्म ये मिट्टी का राख होना है छोड़ के ये जहां चले गए जो हम फिर लौट के कहाँ वापस आना है - एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें More
  • गरीबी बेरोजगारी भुखमरी पर मुक्तक, नसीर बनारसी

    तुमको सुविधायें मिली

    तुमको सुविधायें मिली लेकिन हमें कठिनाईयां । देख लो फिर भी वही पर हम भी प्यारे आ गये । जब लगी ज्यादा सुरक्षित निध॔नों की झोपड़ी नसीर । छोड़कर अपने महल हम डर के मारे आ गये । पार कर गहरा समन्दर हम किनारे आ गये । नाव थी टूटी मगर उसके सहारे आ गये [...] More
  • नारी के ज़ख्म पर कविता, अवधेश कुमार ‘रजत’

    नारी हित की बात करेंगे

    नारी हित की बात करेंगे पर आवाज़ दबाएंगे, नैतिकता का पिंड दान कर अपना राज चलाएंगे। रूप सजा निकले जब घर से गणिका तुल्य बताते हैं, रहे सादगी में यदि औरत कौड़ी मूल्य लगाते हैं। नारी तन को देख वासना रोम रोम में धधक उठे, जब विरोध वो दर्ज करे तो आग अहं की भड़क [...] More
  • जज़्बातों पर कविता, एकता खान

    टूटे बिखरे दिल को अपने

    टूटे बिखरे दिल को अपने आज ख़ुद ही मरहम लगायी हूँ घायल से जज़्बातों को अपने आज ख़ुद ही दिलासे दिलायी हूँ अधूरी सी ख़्वाहिशों को अपने आज ख़ुद ही दफ़्न कर आयी हूँ आरज़ू प्यार की जो दिल को थी आज आस ही खत्म कर आयी हूँ मेरे रास्तों की मंज़िल न थी आज [...] More
  • सुधार पर कविता, अवधेश कुमार 'अवध'

    मानस – दर्पण देख, दोष

    मानस - दर्पण देख, दोष - गुण स्वयं निहारें । अपने को पहचान, आप ही आप सुधारें ।। यह आदत बेकार कि देखें दोष पराया । बेहतर होगा कार्य, करें निज दोष सफाया ।। अगर सभी हों साफ, धरा होगी सुखदाई । गाँठ बाँध लो मन्त्र, सभी बहनें अरु भाई ।। कर लें स्वयं सुधार, [...] More
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