Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • ज़माने पर ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    आहटें हैं ये उनके आने की

    आहटें हैं ये उनके आने की चमकी क़िस्मत ग़रीबखाने की है अदा यह भी रूठ जाने की कोई कोशिश करे मनाने की इन अदाओं को हम समझते हैं बात छोड़ो भी आने-जाने की आज छाई हुई है काली घटा याद आती है आशियाने की यह तेरे प्यार का करिश्मा है धूम है हर तरफ़ फ़साने [...] More
  • रिश्ते जो नाम से बँधे होते हैं

    रिश्ते जो नाम से बँधे होते हैं क्या सिर्फ़ वो ही गहरे होते हैं हमसे जब वो दिल बदल के देखेंगे मोहब्बत के बारिशों में भीग जाएँगे अनकही सी बातों को मेरे काश, आँखों से ही पढ़ लेते वो न उन्हें कभी पढ़ना आया और न हमें कभी कहना आया -एकता खान एकता खान जी [...] More
  • आशिकी पर कविता, एकता खान

    दिलों से खेलने वाले

    दिलों से खेलने वाले प्यार का मोल न लगाना हम जो चले गए एक बार तो वापस नहीं आएँगे प्यार का कुछ तो सिला दो एक क़दम तुम भी बढ़ा दो आ के भर लो बाहों में और दिल में बसा लो सासें भी कम हैं और वक़्त भी ज़िंदगी बार-बार मौक़ा नहीं देती -एकता [...] More
  • शिक्षा का महत्व, गोविन्द व्यथित

    गुरूदेव का अभिनन्दन और स्वागत-सत्कार

    गुरूदेव का अभिनन्दन और स्वागत-सत्कार पहनाकर जूतों का हार नंगे पाँव परेड कराना छात्रों की एक आम सभा बुलाना स्वागत कर्ताओं के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव लाना वे लोग है कतई नासमझ जो कहें इसे दुर्व्यवहार अरे भाई फूलों का हार मौके पर न हुआ तैयार तो जूतों की ही सही माला किसी तरह काम तो [...] More
  • मैं नींद भर सो नहीं सकता

    मैं नींद भर सो नहीं सकता आँखों की नींद कहीं दूर किसी कोने में जा छिपी है जिसे खोजते-खोजते सिर चकराने लगा है दिमाग भी निष्क्रियता की और जाने लगा है हड़ताली मजदूर की तरह काम बन्द करके बैठ गया है तबीयत बेचैन सी हो गयी है शांति, कहीं खो गयी है | -गोविन्द व्यथित [...] More
  • अंधेरा मिटाने चले, मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

    सोचिए बंधुवर सोचिये

    सोचिए बंधुवर सोचिये किस तरह आज कोई जिये । जो अंधेरा मिटाने चले बुझ गये वो दिये किसलिये । ज़ख्म से कोई खाली नही फिर जख्मो को कौन सिये । सोचिए बंधुवर सोचिये । बह चली त्रासदी की लहर । रोकिए रोकिए रोकिये । सोचिए बंधुवर सोचिये । किस तरह आज कोई जिये । दिल [...] More
  • उसके वहमो गुमान में रहना

    उसके वहमो गुमान में रहना हर घड़ी इम्तिहान में रहना बनके बादल किसी की यादॊ का फ़िक़्र के आसमान मे रहना दुश्मनी क्यों किसी से हम रक्खे कब तलक है जहान में रहना रूह भी चाहती है आज़ादी क्यों बदन के मक़ान में रहना करके एहसान जो जताते हैं क्यों समझते हैं शान में रहना [...] More
  • जीवन पर व्यंग, अवधेश कुमार ‘रजत’

    जीवन पर व्यंग

    भूल गए राह श्याम, जपती है साँस नाम। विरह व्यथा गई चीर, हरो नाथ विकट पीर।। बंशी की लुप्त तान, यमुना का मंद गान। गाय ग्वाल भी उदास, छोड़ रही साथ आस।। बैर साध रहे आप, समझ रहे नहीं ताप। हमें घेर खड़ा काल, कष्ट रहे नहीं टाल।। नयनों से बहे धार, कहती तुमको पुकार। [...] More
  • दुनियएकता कहा है, पी एल बामनिया

    दुनिया मे प्रदूषण कम कहाँ है

    दुनिया मे प्रदूषण कम कहाँ है रहने के जैसा मौसम कहाँ है। इंसान को इंसान नजर आता नही अभिमान का धुंआ कम कहाँ है। हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सब एक जगह बैठे ऐसी जाजम कहाँ है एकता की बात हम रोज करते है एक साथ उठने वाले कदम कहाँ है। टेक्स जी भर कर लगा [...] More
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