Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • मधुमास पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    इन्द्रधनुषी रंग से

    इन्द्रधनुषी रंग से तुमने लिखा है तितलियों के पंख पर इतिहास मेरा सांस का पतझार नैनों में समेटे जल रहा है रात भर मधुमास मेरा ये खड़ा आकाश तुमको जानता है और ये सागर तुम्हें पहचानता है एक वकिम नैन से घायल हुआ सिसकता मधुमास तुमको जानता है अब न कोई रागिनी फिर बज सकेगी [...] More
  • मोहब्बत पर कविता, एकता खान

    इश्क़ में खोए लोगों

    इश्क़ में खोए लोगों को दुनियादारी नही दिखती धड़कते दिल को जहां की समझदारी नही दिखती जिनके दिल में नफ़रत और हिंसा ही भरी रहती अम्न की राह में उनकी हिस्सेदारी नही दिखती वतन की शान की ख़ातिर लुटा दे जान भी अपनी युवाओं में अब ऐसी जिम्मेदारी नही दिखती कहते कुछ और करते कुछ [...] More
  • विश्वास पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    चाहे जीवन की सारी

    चाहे जीवन की सारी खुशियाँ ले लो तुम पर मुझको जीने भर का विश्वास दिला दो जिसके लिए सभी रिश्तों को आदर्शों को मिटा दिया हो जिस पुनीत संकल्प पक्ष में मन समिधा सा जला दिया है सारे वे अनजाने शाश्वत सपने कैसे टूट गये हैं मुड़कर पीछे देखा तो आदर्श कहाँ के छूट गये [...] More
  • उपहार पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    तुम कह दो तो

    तुम कह दो तो गरल कलश को मैं तेरा उपहार मान लूँ विस्मृति के सन्दर्भो में जब नव प्रभात के घोष उभरते संस्कृति के वातायन से जब भी अतीत के गीत मचलते सुधियों का पंछी जब भी पर फैलाकर नभ में उड़ता है व्याकुल विरही आकुल मन से आधे पथ से ही मुड़ता है संतापों [...] More
  • भटके लोगो पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    अब तो ऐसा लगता जैसे

    अब तो ऐसा लगता जैसे हर सावन सूखा होगा धरती खूँ कि प्यासी होगी हर मानव भूखा होगा व्याकुल प्यासा है जान जीवन सबकी त्रृषा वुझाये कौन फन्दा सबके गले पड़ा है आखिर गला छुड़ाये कौन रूठ गयी खुशिया पलको से अधरो से रूठी मुसकान राधा से काँधा रूठे है रूठ गयी है वंशितान अपनी [...] More
  • रह पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    सभी यहाँ पर

    सभी यहाँ पर भटक रहे है | सबको राह दिखाये कौन || फन्दा सबके गले पड़ा है | आखिर गला छुड़ाये कौन || सागर नित तूफान चाहता | यह धरती वलिदान है || आसमान को अपने तारों | पर अतिषय अभिमान है || छलक रहे पलकों पर आंसू | फिर पहले मुसकाये कौन || फन्दा [...] More
  • भरस्टाचार पर दोहा, जगदीश तिवारी

    दो पंक्ति में ही करे

    दो पंक्ति में ही करे दोहा अपनी बात पोल सभी की खोलता देता सबको मात शब्दों से अनुबन्ध कर मीत रचो नव छन्द छन्द गति बढ़ती रहे कभी न हो ये मन्द उगता सूरज बन हँसा जब तक वो इन्सान आव भगत सबने करी दिया सभी ने मान टूट रहे अनुबन्ध सब भटक रहे सम्बन्ध [...] More
  • मेहनत पर ग़ज़ल, शाद उदयपुरी

    लड़ ज़माने से

    लड़ ज़माने से जिगर पैदा कर मेहनत करके हुनर पैदा कर मंज़िलें तुझको मिलेंगी आख़िर हिम्मतों से वो डगर पैदा कर दौड़ में तू ही यहाँ जीतेगा हौसलों में वो लहर पैदा कर सुर्खियों में तब रहेगा मुमकिन बेहतर कोई ख़बर पैदा कर बात तेरी तब सुनेगी दुनियाँ बात में अपनी असर पैदा कर इश्क़ [...] More
  • फेकने पर दोहा, जगदीश तिवारी

    भाई इतनी फेंक मत

    भाई इतनी फेंक मत, मत दिखला तू जात जो गरजे बरसे नहीं जग जाने ये बात ढाल ज़रा खुद को सनम ! जीवन के अनुसार हो जायेंगे सपन सनम ! सब तेरे गुलज़ार दोहो ने जब से किया इस हिय का श्रृंगार कवियों के दरबार का बन गया मैं गलहार हार गया मतदान वो घूम [...] More
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