सभी यहाँ पर भटक रहे है | सबको राह दिखाये कौन || फन्दा सबके गले पड़ा है | आखिर गला छुड़ाये कौन || सागर नित तूफान चाहता | यह धरती वलिदान है || आसमान को अपने तारों | पर अतिषय अभिमान है || छलक रहे पलकों पर आंसू | फिर पहले मुसकाये कौन || फन्दा सबकके गले पड़ा है | आखिर गला छुड़ाये कौन || कलियाँ खिल न सकी पहले ही | तोड़ ली गयी डाली से || खून पसीना एक कर दिया | दर्द न पूछा माली से || डाली से जो टूट गया है | उनको पुन: मिलाये कौन || फन्दा सबके गले पड़ा है | आखिर गला छुड़ाये कौन || हाहाकार मचा सब कोई | अपने हाथों जहर पिये || भूख भूख सुखी ठठरी | इस विष ज्वाला में कौन जिये || सभी तरसते है प्रकाश को | पहले दिया जलाये कौन || सभी यहाँ पर भटक रहे हैं | सबको राह दिखाये कौन || – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सभी यहाँ पर
सभी यहाँ पर भटक रहे है |
सबको राह दिखाये कौन ||
फन्दा सबके गले पड़ा है |
आखिर गला छुड़ाये कौन ||
सागर नित तूफान चाहता |
यह धरती वलिदान है ||
आसमान को अपने तारों |
पर अतिषय अभिमान है ||
छलक रहे पलकों पर आंसू |
फिर पहले मुसकाये कौन ||
फन्दा सबकके गले पड़ा है |
आखिर गला छुड़ाये कौन ||
कलियाँ खिल न सकी पहले ही |
तोड़ ली गयी डाली से ||
खून पसीना एक कर दिया |
दर्द न पूछा माली से ||
डाली से जो टूट गया है |
उनको पुन: मिलाये कौन ||
फन्दा सबके गले पड़ा है |
आखिर गला छुड़ाये कौन ||
हाहाकार मचा सब कोई |
अपने हाथों जहर पिये ||
भूख भूख सुखी ठठरी |
इस विष ज्वाला में कौन जिये ||
सभी तरसते है प्रकाश को |
पहले दिया जलाये कौन ||
सभी यहाँ पर भटक रहे हैं |
सबको राह दिखाये कौन ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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