देखो तो दीवार कहाँ है दो धारी तलवार कहाँ है तुम भी इंसा ,हम भी इंसा सोचो तो तक़रार कहाँ है गंगा- जल जो चाहे पी ले मज़हब पहरेदार कहाँ है साथ जियेन्गे, साथ मरेन्गे बोलो वो इक़रार कहाँ है एक फ़लक है एक ज़मी है हमको भी इंकार कहाँ है हाथ पकड गर साथ [...]
More
-
देखो तो दीवार कहाँ है
-
पास आकर भी फ़ासला रखना
पास आकर भी फ़ासला रखना, बे मज़ा है यूँ राब्ता रखना । तुम जुदाई का दर्द क्या जानो शर्त ऐसी न बाख़ुदा रखना । बाद जाने के तेरे छोड़ दिया सामने हमने आईना रखना । यूँ इबादत सी हो गई अपनी दिल में चेहरा ये आपका रखना । भीड़ में लोग खो गए 'निशा' कितने [...] More -
गुबारे ग़म को दबाते रखिए
गुबारे ग़म को दबाते रखिए, हंसी लबों पे सजाये रखिए। जो चाहो बज्मे सुखन हो रोशन, चरागे दिल को जलाए रखिए । अगर चेतन हक़ दबाना हो उनका, नींद गहरी में सुलाये रखिए । बलंदी चाहो गर सियासत में, रक़ीबो से भी बनाए रखिए । जिसने मजबूर किया है मधुकर, राज ये दिल में छुपाए [...] More -
खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे
खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे, बेवक्त तो यह मौसम बदलने नहीं देंगे। बड़ी मशक्कत के बाद बस्तियों में उजाले हैं, दोपहर के इस सूरज को हम ढलने नहीं देंगे। सब धर्मों के लोगों ने जिसे मिलकर गुनगुनाया है, खुशियों के उस गीत को, गम में बदलने नहीं देंगे। सब मिलकर मेरी आवाज में [...] More -
लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे
लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे, अंधेरों के लिए सूरज को धमकाने लगे। बंजर जमीं पर फसल उगाने की बात चली, चुनावी बादल अब शहर पर मंडराने लगे। हर मज़हब की अपनी अलग दुकान लगी, कोयल तो ठीक है, कौए भी अब गाने लगे। हर तरफ चमचागिरी, चापलूसी के बादल, खुद्दार मौसम तो आने से [...] More -
घर को बड़ी ही राहत मिली
घर को बड़ी ही राहत मिली, जब इन दीवारों को छत मिली। इक बहुत बड़ी मिल्कियत मिली, बच्चे को माँ के रूप मे जन्नत मिली। शैतान को तो कड़ी सज़ा मिली, पर मुंसिफ को बड़ी तोहमत मिली। हर चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस मिली, हमें सुरक्षित चलने की नसीहत मिली। मजदूर को छोड़ सब को राहत [...] More -
कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं
कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं, नादां समझ रहे है कि हम बड़े हुए हैं। वो आसमान और इस धरती के इतर, खुद इक अलग जमीं पे खड़े हुए हैं। पूजे हम भी जाएंगे इस इंतजार में, खेत की मुंडेर पर कुछ पत्थर गढ़े हुए हैं। रंग मिलता है अपना भी कोयल से, सोच, [...] More -
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर आज अपनों को दग़ा दे इस तरह वो देख उड़ना चाहता है आसमाँ पर हो गये कमजोर देखो किस तरह वो तीर भी लगता नहीं जिनसे निशाँ पर जो कभी सूखी पड़ी थी देख लो अब वो नदी कैसी यहाँ अपने [...] More -
आज फिर में गुनगुनाना चाहता हूँ
आज फिर में गुनगुनाना चाहता हूँ हर क़दम पे मुस्कराना चाहता हूँ ऐ अंधेरे तू यहाँ से भाग जा अब रौशनी को घर बुलाना चहता हूँ पर लगा दे ऐ ख़ुदा तू आज मेरे आसमां पे फड़फड़ाना चाहता हूँ आज जो आतंक फैला देश में है मैं उसे जड़ से मिटाना चाहता हूँ भेद देते [...] More