लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे, अंधेरों के लिए सूरज को धमकाने लगे। बंजर जमीं पर फसल उगाने की बात चली, चुनावी बादल अब शहर पर मंडराने लगे। हर मज़हब की अपनी अलग दुकान लगी, कोयल तो ठीक है, कौए भी अब गाने लगे। हर तरफ चमचागिरी, चापलूसी के बादल, खुद्दार मौसम तो आने से ही कतराने लगे। फरेबी फुलवारी के फूल बहुत महकने लगे, लोग भरी दुपहरी को अब शाम बताने लगे। अब हम रोज ईगो की शाम सजाने लगे है, सच को सच कहने से भी कतराने लगे है। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की बेहतरीन ग़ज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे
लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे,
अंधेरों के लिए सूरज को धमकाने लगे।
बंजर जमीं पर फसल उगाने की बात चली,
चुनावी बादल अब शहर पर मंडराने लगे।
हर मज़हब की अपनी अलग दुकान लगी,
कोयल तो ठीक है, कौए भी अब गाने लगे।
हर तरफ चमचागिरी, चापलूसी के बादल,
खुद्दार मौसम तो आने से ही कतराने लगे।
फरेबी फुलवारी के फूल बहुत महकने लगे,
लोग भरी दुपहरी को अब शाम बताने लगे।
अब हम रोज ईगो की शाम सजाने लगे है,
सच को सच कहने से भी कतराने लगे है।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की बेहतरीन ग़ज़ल
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