खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे, बेवक्त तो यह मौसम बदलने नहीं देंगे। बड़ी मशक्कत के बाद बस्तियों में उजाले हैं, दोपहर के इस सूरज को हम ढलने नहीं देंगे। सब धर्मों के लोगों ने जिसे मिलकर गुनगुनाया है, खुशियों के उस गीत को, गम में बदलने नहीं देंगे। सब मिलकर मेरी आवाज में आवाज़ मिला दो, मेरे शब्दों को कुछ लोग ग़ज़लों में ढलने नहीं देंगे। अब आप चाहो खुशियों की दिवाली मनाओ, नफरतों की होली तो हम जलने नहीं देंगे। – पी एल बामनिया नफरतों को मिटाने पर हिंदी ग़ज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे
खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे,
बेवक्त तो यह मौसम बदलने नहीं देंगे।
बड़ी मशक्कत के बाद बस्तियों में उजाले हैं,
दोपहर के इस सूरज को हम ढलने नहीं देंगे।
सब धर्मों के लोगों ने जिसे मिलकर गुनगुनाया है,
खुशियों के उस गीत को, गम में बदलने नहीं देंगे।
सब मिलकर मेरी आवाज में आवाज़ मिला दो,
मेरे शब्दों को कुछ लोग ग़ज़लों में ढलने नहीं देंगे।
अब आप चाहो खुशियों की दिवाली मनाओ,
नफरतों की होली तो हम जलने नहीं देंगे।
– पी एल बामनिया
नफरतों को मिटाने पर हिंदी ग़ज़ल
पी एल बामनिया जी की रचनाएँ
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One reply to “खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे”
Sudha Devrani
बहुत ही सुन्दर। लाजवाब…