कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं, नादां समझ रहे है कि हम बड़े हुए हैं। वो आसमान और इस धरती के इतर, खुद इक अलग जमीं पे खड़े हुए हैं। पूजे हम भी जाएंगे इस इंतजार में, खेत की मुंडेर पर कुछ पत्थर गढ़े हुए हैं। रंग मिलता है अपना भी कोयल से, सोच, कुछ कौए भी गाने पर अड़े हुए हैं। इंग्लिश में बात करना जरूरी समझते हैं, जो हिंदी, माँ की गोद में पले बढ़े हुए हैं। सुर्खियों में रहने का शौक था जिन्हें, वो अखबार की रद्दी में पड़े हुए हैं। झड़ गए फूल पत्तियां सब पतझड़ में, बच गए वो ठूंठ अब भी अकड़े हुए हैं। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की बेहतरीन ग़ज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं
कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं,
नादां समझ रहे है कि हम बड़े हुए हैं।
वो आसमान और इस धरती के इतर,
खुद इक अलग जमीं पे खड़े हुए हैं।
पूजे हम भी जाएंगे इस इंतजार में,
खेत की मुंडेर पर कुछ पत्थर गढ़े हुए हैं।
रंग मिलता है अपना भी कोयल से,
सोच, कुछ कौए भी गाने पर अड़े हुए हैं।
इंग्लिश में बात करना जरूरी समझते हैं,
जो हिंदी, माँ की गोद में पले बढ़े हुए हैं।
सुर्खियों में रहने का शौक था जिन्हें,
वो अखबार की रद्दी में पड़े हुए हैं।
झड़ गए फूल पत्तियां सब पतझड़ में,
बच गए वो ठूंठ अब भी अकड़े हुए हैं।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की बेहतरीन ग़ज़ल
पी एल बामनिया जी की रचनाएँ
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