कश्तियों ने आज तट से फिर मुझे गुंजन सुनाई फिर कोई ललकार तट की धारियों से छन के आयी सिंधु की अवगाहना के स्वर घुमड़ते ज्वार जैसे प्रश्न की अभ्यर्थनाएँ जाए बस उस पार कैसे । उर्मिया जब राह में नित तांडवी अलाप गाए ओर घन की रागिनी भी राह में जब नित्य आये । है विकट जीवन परिधि केंद्र की अवधारणा में लक्ष्य ले पदचाप आहट चल पड़े किस धारणा में । नित्य झंझाओ के झोंको में ये नैय्या डोलती है धैर्य कितना है मनुज का मास पल में तोलती है । हाथ की पतवार भी भुज बन्धनों की बेड़ियाँ है और घायल राह पथ में लक्ष्य की सब एड़ियाँ है । धैर्य की सम्भावनाओ के भरम को तोल कर के ओर गठरी कर्म की सद्भावना में खोल कर के इस जगत में चल पड़ा हूँ शून्य की जड़ यात्रा में । ओर कितना भार मुझमे इस जगत की मात्रा में । ज्ञान की अज्ञानता में वर्ण के विन्यास काले ओर बिंदु चेतना के द्वार पर निर्वेद ताले । है भँवर मय ये सुरंगे ओर उत्पाती है लहरें है कही सागर छिछोले और ये तटबन्ध गहरे । थाह क्या है कौन जाने बस हमे चलते ही जाना ओर श्वासों ने बुना है ज़िन्दगी का एक ताना हाथ की संघटनाए हर लहर को थाम लेगी ओर नोका की कहानी हर दिशा को जान लेगी । – डॉ. जय वैरागी [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
फिर वही माझी खड़ा है फिर वही पतवार मेरी
कश्तियों ने आज तट से फिर मुझे गुंजन सुनाई
फिर कोई ललकार तट की धारियों से छन के आयी
सिंधु की अवगाहना के स्वर घुमड़ते ज्वार जैसे
प्रश्न की अभ्यर्थनाएँ जाए बस उस पार कैसे ।
उर्मिया जब राह में नित तांडवी अलाप गाए
ओर घन की रागिनी भी राह में जब नित्य आये ।
है विकट जीवन परिधि केंद्र की अवधारणा में
लक्ष्य ले पदचाप आहट चल पड़े किस धारणा में ।
नित्य झंझाओ के झोंको में ये नैय्या डोलती है
धैर्य कितना है मनुज का मास पल में तोलती है ।
हाथ की पतवार भी भुज बन्धनों की बेड़ियाँ है
और घायल राह पथ में लक्ष्य की सब एड़ियाँ है ।
धैर्य की सम्भावनाओ के भरम को तोल कर के
ओर गठरी कर्म की सद्भावना में खोल कर के
इस जगत में चल पड़ा हूँ शून्य की जड़ यात्रा में ।
ओर कितना भार मुझमे इस जगत की मात्रा में ।
ज्ञान की अज्ञानता में वर्ण के विन्यास काले
ओर बिंदु चेतना के द्वार पर निर्वेद ताले ।
है भँवर मय ये सुरंगे ओर उत्पाती है लहरें
है कही सागर छिछोले और ये तटबन्ध गहरे ।
थाह क्या है कौन जाने बस हमे चलते ही जाना
ओर श्वासों ने बुना है ज़िन्दगी का एक ताना
हाथ की संघटनाए हर लहर को थाम लेगी
ओर नोका की कहानी हर दिशा को जान लेगी ।
– डॉ. जय वैरागी
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