भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार धो माँ! मेरे पाप [...]
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भीतर उठते भाव को
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बाँधे गर तूने रखी
बाँधे गर तूने रखी सड़क नियम से डोर तेरे जीवन से कभी भागेगी न भोर नियम से गाड़ी चला, भाई! [...] More -
कभी घर से बाहर
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो कहाँ जा रहे हो बचाकर ये दामन [...] More -
दिल जो तुम से
दिल जो तुम से लगा नहीं होता ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता साथ जो छोड़ तुम चले जाते पास कुछ [...] More -
शहरी आँधी में रमा,
शहरी आँधी में रमा, दूर हो गया गाँव । मीत! कहीं दीखे नहीं, पीपल बरगद छाँव।। पीपल बरगद छाँव, हाय! [...] More -
अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध
अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध । प्रीत-प्यार क बीच में, ये कैसी दुर्गन्ध ।। ये कैसी दुर्गन्ध, समझ में [...] More -
शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर
शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर माँ!मुझको वो पथ दिखा, जिस पथ चला कबीर मन्दिर मस्ज़िद के लिए, करते [...] More -
गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार
गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार आँख लगी ना रात भर खुला रहा हिय-द्वार सपनों में, मैं देखती [...] More -
निभाओ कुछ बड़ा किरदार भाई
निभाओ कुछ बड़ा किरदार भाई समय यूँ मत करो बेकार भाई लुटे कितने यहाँ घर बार भाई पढ़ो कुछ तो [...] More