Tag Archives: जगदीश तिवारी

  • माँ शारदा से प्रार्थना पर दोहे, जगदीश तिवारी

    भीतर उठते भाव को

    भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार धो माँ! मेरे पाप सब, मुझे बना इन्सान अन्तस् में भर ज्ञान वो, जिससे में अनजान माँ! से रिश्ता जोड़ ले, माँ से कर अनुराग माँ! कृपा जिस पर हुई, उसके जागे भाग एक बार तो बांध ले, माँ! [...] More
  • बाँधे गर तूने रखी

    बाँधे गर तूने रखी सड़क नियम से डोर तेरे जीवन से कभी भागेगी न भोर नियम से गाड़ी चला, भाई! नियम न तोड़ सड़क रक्षा अभियान से कुछ तो नाता जोड़ स्कूटर में बैठक र कहाँ जा रहा यार हेलमेट तो पहन ले, ओ! मेरे भरतार कार ज़रा धीरे चला, देख सामने देख घटना गर [...] More
  • सबको अपना समझने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    कभी घर से बाहर

    कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो कहाँ जा रहे हो बचाकर ये दामन ज़रा पास आओ नज़र भर तो देखो बजायेंगे ताली सभी देखना तुम बहर में ग़ज़ल कोई कहकर तो देखो रकी़बों से मिलकर मिलेगा न कुछ भी रफीकों से दिल कुछ लगाकर तो देखो अंधरों ने [...] More
  • अपनों से रिस्ता निभाने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    दिल जो तुम से

    दिल जो तुम से लगा नहीं होता ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता साथ जो छोड़ तुम चले जाते पास कुछ भी बचा नहीं होता दूरियाँ गर बड़ी नहीं होती दर्द क्या है पता नहीं होता कुछ तो तुमने उसे कहा होगा वरना वो यूँ ख़फा नहीं होता तोड़कर यार रिश्ते अपनों से कोई भी फायदा [...] More
  • गांव के प्रति अपनेपन पर छंद, जगदीश तिवारी

    शहरी आँधी में रमा,

    शहरी आँधी में रमा, दूर हो गया गाँव । मीत! कहीं दीखे नहीं, पीपल बरगद छाँव।। पीपल बरगद छाँव, हाय! हुई एक सपना; अपना था रे गाँव, शहर हुआ नहीं अपना। अब जीवन की नाव, हमारी ठहरी ठहरी; कहने को हम मीत, जहाँ में बाबू शहरी।। - जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के छंद जगदीश [...] More
  • सम्बन्धो के बिच ग़लतफहमी पर छंद, जगदीश तिवारी

    अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध

    अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध । प्रीत-प्यार क बीच में, ये कैसी दुर्गन्ध ।। ये कैसी दुर्गन्ध, समझ में बात न आई; चहुँ-दिश काली रात, समय कैसा ये भाई । सुनो! कहे जगदीश, रखो हिय अपना पावन; नाचेंगे सम्बन्ध, हँसेगा फिर अपनापन ।। - जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के छंद जगदीश तिवारी जी [...] More
  • शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर

    शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर माँ!मुझको वो पथ दिखा, जिस पथ चला कबीर मन्दिर मस्ज़िद के लिए, करते दो दो हाथ मदिरालय में बैठकर, दोनों पीते साथ सार रहित उस बात को, कभी न दो विस्तार जो जग और समाज का, कर न सके उपकार रब के घर केवल मिले, शुभ कर्मों का [...] More
  • जीवनकाल पर दोहे, जगदीश तिवारी

    गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार

    गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार आँख लगी ना रात भर खुला रहा हिय-द्वार सपनों में, मैं देखती तेरी छवि सरताज आजाओ घर आँगने दर्शन दो नटराज नयना तू मटकाय के हिय मेरा भटकाय सारा जग देखत सनम! तोहे लाज न आय नयन सजन से क्या मिले भूल गयी संसार कुछ भी अब [...] More
  • देशभक्ति पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    निभाओ कुछ बड़ा किरदार भाई

    निभाओ कुछ बड़ा किरदार भाई समय यूँ मत करो बेकार भाई लुटे कितने यहाँ घर बार भाई पढ़ो कुछ तो ज़रा अख़बार भाई बने अपने यहाँ ख़ुद ही लुटेरे कि जीना हो गया दुश्व़ार भाई जला दो नफ़रतों का घर दिलों से बनो अपनो के तुम गलहार भाई शरारत कर रहा अपना पड़ौसी सभी रहना [...] More
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