Tag Archives: प्रभु लाल बामनिया

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  • जीवन के सुख दुख पर कविता, पी एल बामनिया

    खुबसूरत है जिंदगी

    खुबसूरत है जिंदगी बस अपना खयाल कर। रख खुशी का हर पल तसवीर मे ढाल कर।। बसंत के बाद पतझड़ भी आना लाजमी है, खुशियो के बीच मिलते गम का न मलाल कर। इस जहाँ मे हर कदम पर कांटे मिलेंगे, रखना कदम हमेशा ही अपना संभाल कर। इस पल जमी पर, अगले ही पल [...] More
  • सियासत के जूते वदो पर कविता कविता, पी एल बामनिया

    अब हर डाल पर एक गुलाब होगा

    अब हर डाल पर एक गुलाब होगा। आंधियो से अब सारा हिसाब होगा।। जग गए इस बस्ती के सोए हुए लोग, सारा लुटा माल अब दस्तियाब होगा। हर एक वोट की कीमत समझता है, वो वोटों का भिखारी कल नवाब होगा। दफतर मे आर टी आई लगा के देख लो, हर सवाल का घुमा फिरा [...] More
  • राजनीतिक पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    कद मे बडे हुए अब जो मिनारो से

    कद मे बडे हुए अब जो मिनारो से। सजने लगे अब वो चाँद सितारो से। चुनावी मौसम अब नजदीक आने लगा है, सजने लगे कुछ पतझड़ भी अब बहारों से। मिलने लगे अब वो घर घर जाकर, मिलती थी जिनकी खबर अखबारो से। कोशिश है उनकी महके, पर वो महके नही, खुशबू आती कहाँ है [...] More
  • दुनियएकता कहा है, पी एल बामनिया

    दुनिया मे प्रदूषण कम कहाँ है

    दुनिया मे प्रदूषण कम कहाँ है रहने के जैसा मौसम कहाँ है। इंसान को इंसान नजर आता नही अभिमान का धुंआ कम कहाँ है। हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सब एक जगह बैठे ऐसी जाजम कहाँ है एकता की बात हम रोज करते है एक साथ उठने वाले कदम कहाँ है। टेक्स जी भर कर लगा [...] More
  • प्यार और नफरत, पी एल बामनिया

    कोई अपना मुझको सदाएं दे

    कोई अपना मुझको सदाएं दे। फिर वो जो चाहे हमे सजाए दे।। दिल प्रेम से इतना भरा रहे, हम अपने दुश्मन को दुआएं दे। इन नफरतो का इलाज कर सके, कुछ ऐसी बेशकीमती दवाएं दे। ये है इस बेवफा जमाने का उसूल, जिसे चाहे हम, वो हमे यातनाए दे। जिन पर हम थोड़ा इतरा सके, [...] More
  • प्यार का दर्द, पी एल बामनिया

    अब थोड़ा सा वक्त तू मेरे नाम कर दे

    अब थोड़ा सा वक्त तू मेरे नाम कर दे, और फिर वक्त के पहिये को जाम कर दे। अब इस तरह से मुझे तू बदनाम कर दे, गमजदा हूँ कुछ और गम मेरे नाम कर दे। -पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की खराब वक्त पर मुक्तक पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] [...] More
  • लाचारी पर कविता, पी एल बामनिया

    जिंदगी मजबूरियो के सांचेे मे ढलती रही

    जिंदगी मजबूरियो के सांचे मे ढलती रही, उम्मीद सब हमारी इक खांचे मे डलती रही। मेरे आंगन में भी धूप सुनहरी निकली मगर, साथ मे बादलों की साजिशे भी चलती रही। मेरी गलती की सजा मैं खुद को देता मगर, ये जिंदगी हर दफा अपने बयान बदलती रही। सियासत के इन मुंसिफो पर मैं यकीं [...] More
  • तानाशाही सरकार पर कविता, पी एल बामनिया

    तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो

    तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो। तुम चाहो पतझडो को बहार कह दो।। तुम्हारा ही राज है अभी यहाँ पर। तुम चाहो तो स्कूटर को कार कह दो।। छुट्टी का दिन बितने लगा यही पर। अपने दफ्तर को तुम घर बार कह दो।। इसी पर मिलने लगी अब हर खबर। अपने मोबाइल को अखबार [...] More
  • जीने का मैं ऐसे हुनर सीख पाया हूँ

    जीने का मैं ऐसे हुनर सीख पाया हूँ

    जीने का मैं ऐसे हुनर सीख पाया हूँ, हजारों गम लेकर भी मुस्कराया हूँ। ईश्वर ने ये अमूल्य जीवन दिया है मुझे, बस इसी बात का जश्न मनाता आया हूँ। इस कलम पर माँ सरस्वती की कृपा से अपने जज़्बातों को मै ज़ाहिर कर पाया हूँ। अपने शब्दों को एक माला में पिरोकर, गीत गज़ल [...] More
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