Tag Archives: विनय साग़र जायसवाल

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  • मरना भी ज़िन्दगी है, विनय साग़र जायसवाल

    जीने का फलसफा यूँ सिखाया हुसैन ने

    जीने का फलसफा यूँ सिखाया हुसैन ने मरना भी ज़िन्दगी है बताया हुसैन ने इक रौशनी सी फैलती जाती थी हर तरफ़ जब - जब क़दम भी अपना बढ़ाया हुसैन ने उस वक़्त इक अजीब ही आलम था सामने तलवार को जो हाथ लगाया हुसैन ने घर बार करबला में लुटाकर बसद ख़ुशी यूँ भी [...] More
  • इश्क़ मोहब्बत की ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    ऐज़ाज़े-मुहब्बत है

    ऐज़ाज़े-मुहब्बत है या इश्क का अहसाँ है अब तक मेरे हाथों में अपना ही गिरेबाँ है तस्वीर मेरी रख कर मुजरिम सी निगाहों में इक मैं ही परेशाँ क्या वो भी तो परेशाँ है सुन कर भी करोगे क्या तुम मेरी कहानी को हर एक कहानी का बस एक ही उन्वाँ है हो खैर उसी [...] More
  • दर्दे दिल पर ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की

    रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की देखेगा जब भी कोई तारीख़ गुलसिताँ की हसरत है इस अदा से देखे वो मेरी जानिब तकती हैं जैसे नज़रें धरती को आसमाँ की बेकैफ़ दर्दे-दिल की तक़दीर कोई देखे आती है पुरसिशों को बारात कहकशाँ की परदेश में ख़ुशी से आये थे हम मगर अब आती [...] More
  • मोहब्बत की ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    बदलेगी ज़माने की लाज़िम

    बदलेगी ज़माने की लाज़िम ये फ़िज़ा देखो तुम फूल मुहब्बत के कुछ दिल में खिला देखो इस जज़्बे - मुहब्बत का अफ़साना बना देखो तस्वीर मेरी अपने घर में तो सजा देखो नस-नस में मुहब्बत की भर दूगाँ हरारत को इक बार ज़रा मुझसे आँखें तो मिला देखो इस दहर में हर सू ही बहरों [...] More
  • खूबसूरती पर नज़्म, विनय साग़र जायसवाल

    वो आँखों पे ज़ुल्फ़ों के पहरे बिठाये

    वो आँखों पे ज़ुल्फ़ों के पहरे बिठाये कभी ख़ुद हँसे अरु मुझे भी हँसाये मेरे गीत अपने लबों पर सजाये कभी दिन ढले भी मेरे घर में आये लगे जेठ सावन का जैसे महीना । थी क़ुर्बान मुझ पर भी ऐसी हसीना ।। कभी मुझको चूमे वो नज़दीक आकर कभी रूठ जाये ज़रा मुस्कुरा कर [...] More
  • देश के हालत पर कविता, विनय साग़र जायसवाल

    बरस रहा है जड़-चेतन से, सुधियों का अनुराग

    बरस रहा है जड़-चेतन से, सुधियों का अनुराग । मिलन-जोत भी लगा रही है, राजभवन में आग ।। पत्र एक न आया उसका, नहीं कोई संदेस चला गया वह मनभावन, क्या जाने किस परदेस डस जाये न साधक मन को, विरही क्षणों का नाग ।। बरस रहा है--------- आज जिधर भी जाता पड़ते, व्यंग्य गरल [...] More
  • दुनिया में बढ़ती नफरत, विनय साग़र जायसवाल

    ख़बर हो तुझको मेरा बुत तराशने वाले

    ख़बर हो तुझको मेरा बुत तराशने वाले खड़े हैं लोग मुझे फिर से मारने वाले मैं उस मुक़ाम पे सदियों खड़ा रहा कैसे जहाँ खड़े थे मेरा सर उतारने वाले इसे ख़ुलूस मैं समझूँ या कोई साज़िश है मुझी को पूजने आये हैं मारने वाले मैं अपने जिस्म को कुछ तो लिबास दे देता ज़रा [...] More
  • दिल टूटने का दर्द, विनय साग़र जायसवाल

    हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे

    हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे कभी ज़मीन कभी आसमान से गुज़रे जुनूने-इश्क में किस-किस जहान से गुज़रे किसी की याद ने बेचैन कर दिया दिल को परिंदे उड़ते हुए जब मकान से गुज़रे हमारे इश्क के आलम की है मिसाल कहीं रह-ए-वफ़ा [...] More
  • दर्द ए ज़िन्दगी पर कविता, विनय साग़र जायसवाल

    ज़िन्दगी अपनी ख़्वार कर बैठे

    ज़िन्दगी अपनी ख़्वार कर बैठे बेवफ़ा से जो प्यार कर बैठे दिल्लगी -दिल्लगी में ही देखो वो हमारा शिकार कर बैठे होश आया भी तो कहाँ आया जबकि सब कुछ निसार कर बैठे रोने धोने से भी है क्या हासिल जब हदें सारी पार कर बैठे अपनी ख़ुशियाँ भी वार दीं उस पर जाने कैसा [...] More
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