जीने का फलसफा यूँ सिखाया हुसैन ने मरना भी ज़िन्दगी है बताया हुसैन ने इक रौशनी सी फैलती जाती थी हर तरफ़ जब – जब क़दम भी अपना बढ़ाया हुसैन ने उस वक़्त इक अजीब ही आलम था सामने तलवार को जो हाथ लगाया हुसैन ने घर बार करबला में लुटाकर बसद ख़ुशी यूँ भी चराग़े – दीन जलाया हुसैन ने शाह-ए-उमम ने सौंपी थीं जो मश्अलें उन्हें परचम बना के उनका दिखाया हुसैन ने सच्चाइयों की अज़्मतें क्या हों निगाह में दुनिया को यह भी.कर के दिखाया हुसैन ने मंज़र वो करबला का तख़य्युल में है अभी किस शान से था सर को कटाया हुसैन ने होने लगा है मेरी दुआओं में भी असर साग़र मुझे भी अपना बनाया हुसैन ने –विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की मनक़बत इमाम हुसैन विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जीने का फलसफा यूँ सिखाया हुसैन ने
जीने का फलसफा यूँ सिखाया हुसैन ने
मरना भी ज़िन्दगी है बताया हुसैन ने
इक रौशनी सी फैलती जाती थी हर तरफ़
जब – जब क़दम भी अपना बढ़ाया हुसैन ने
उस वक़्त इक अजीब ही आलम था सामने
तलवार को जो हाथ लगाया हुसैन ने
घर बार करबला में लुटाकर बसद ख़ुशी
यूँ भी चराग़े – दीन जलाया हुसैन ने
शाह-ए-उमम ने सौंपी थीं जो मश्अलें उन्हें
परचम बना के उनका दिखाया हुसैन ने
सच्चाइयों की अज़्मतें क्या हों निगाह में
दुनिया को यह भी.कर के दिखाया हुसैन ने
मंज़र वो करबला का तख़य्युल में है अभी
किस शान से था सर को कटाया हुसैन ने
होने लगा है मेरी दुआओं में भी असर
साग़र मुझे भी अपना बनाया हुसैन ने
–विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की मनक़बत इमाम हुसैन
विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ
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