Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • बाँधे गर तूने रखी

    बाँधे गर तूने रखी सड़क नियम से डोर तेरे जीवन से कभी भागेगी न भोर नियम से गाड़ी चला, भाई! नियम न तोड़ सड़क रक्षा अभियान से कुछ तो नाता जोड़ स्कूटर में बैठक र कहाँ जा रहा यार हेलमेट तो पहन ले, ओ! मेरे भरतार कार ज़रा धीरे चला, देख सामने देख घटना गर [...] More
  • राजनीती चलने वालो पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    रगे खू में क्या

    रगे खू में क्या घुला क्या कहें हम जबाँ रख के बेजुबाँ क्यूं रहें हम जबाँ पर ताले लगे है ज़र्फ़ के कम ज़र्फ़ को कम ज़र्फ़ ना कहें हम उजाड़ा घर को सियासतगरों ने कहाँ जाकर बोलिये अब रहें हम मुनासिब ये तो नहीं हो सकेगा तमाशा देखा करे चुप रहे हम गुलाबों की [...] More
  • फरेबी और जूठी दुनिया पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    और हम क्या-क्या

    और हम क्या-क्या करें मुस्कराने के लिये घर हमने जला दिया जगमगाने के लिये दोस्ती वादे वफा सब फरेबों के भरे एक भी शय ना बची दिल लगाने के लिये आपमें हममें रहा फर्क ये सब से बड़ा आप हो अपने लिये हम ज़माने के लिये ना पता अपना हमें ना ज़माने की खबर याद [...] More
  • प्यार में सपना बनाने पर कविता, इरशाद अज़ीज़

    एक सपना बुना था उसने

    एक सपना बुना था उसने मुझे बताये बिना मेरे होने में अपने होने का जबकि मैं अपने होने को तलाशता रहा उसके होने में अपने न होने की बेचैनी के साथ | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे [...] More
  • सर्दी के मर पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    तन पर लपेटे

    तन पर लपेटे फटे चिथडे़, नँगे-पैर वह चला जाता है। जाडे़ की बेदर्द हवाओ से वह, अपना बदन छिपाता जाता है। नही माँगता सूरज से धूप, वह तो छिप गया बादलो की ओट। कोहरे की काली-घनी चादर में, ढूँढ रहा कोई फटा पूराना कोट। देखकर सूरज की ओर वह, सेंक रहा वह अपनी काली-काया। मदम-मदम [...] More
  • सबको अपना समझने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    कभी घर से बाहर

    कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो कहाँ जा रहे हो बचाकर ये दामन ज़रा पास आओ नज़र भर तो देखो बजायेंगे ताली सभी देखना तुम बहर में ग़ज़ल कोई कहकर तो देखो रकी़बों से मिलकर मिलेगा न कुछ भी रफीकों से दिल कुछ लगाकर तो देखो अंधरों ने [...] More
  • संघर्ष करने पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    चिंता मे समय को

    चिंता मे समय को न करो बर्बाद चिंतन मे करो, हो जाओगे आबाद एक माटी का दीया अँधेरे से लडे, तु तो भगवान का दिया फिर क्यूँ डरे । - हेमलता पालीवाल "हेमा" हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे [...] More
  • माता के श्राद्ध पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    अपने नरम हाथो से

    अपने नरम हाथो से नरम-नरम रोटी सेंकती, एक -एक निवाला वो हमे खिलाकर फिर खाती, आज उस जननी का श्राद्ध हमे मनाना है, अर्पण-तर्पण से उसे भोग लगाना है । भरे-पुरे परिवार संग, श्रद्धा अर्पण करनी है, श्राद्ध-तिथि पर आज उसे मौन-श्रृदांजलि देनी है । नैनो मे मेरे अश्क-सागर होगा मन कूंठित व दिल गमगीन [...] More
  • इंसानियत ख़तम होने पर कविता, गोविन्द व्यथित

    जमीन पर गड़े

    जमीन पर गड़े पत्थर ने अचानक दिया रोक पाँवों को एक करारी ठोकर लगी दर्द से कराह उठा तन्द्रा भागी, देखा उसे लगा, वह अविचलित सा अपने स्थान पर ठहाके लगा रहा हो हमारे अज्ञान पर चिढ़ा रहा हो उसे मानव ने ही तो इस तरह असहाय फेंक दिया निज प्रयत्न से उसने स्वयं को [...] More
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