और हम क्या-क्या करें मुस्कराने के लिये घर हमने जला दिया जगमगाने के लिये दोस्ती वादे वफा सब फरेबों के भरे एक भी शय ना बची दिल लगाने के लिये आपमें हममें रहा फर्क ये सब से बड़ा आप हो अपने लिये हम ज़माने के लिये ना पता अपना हमें ना ज़माने की खबर याद अब कुछ ना रहा भूल जाने के लिये हम तो पूरी तरह हो चुके हैं ना तवाँ सिर्फ कुछ सांसे बची हैं लुटाने के लिये शोख जी नहीं जाम हाथों में कभी देखना ही है बहुत लड़खड़ाने के लिये – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
और हम क्या-क्या
और हम क्या-क्या करें मुस्कराने के लिये
घर हमने जला दिया जगमगाने के लिये
दोस्ती वादे वफा सब फरेबों के भरे
एक भी शय ना बची दिल लगाने के लिये
आपमें हममें रहा फर्क ये सब से बड़ा
आप हो अपने लिये हम ज़माने के लिये
ना पता अपना हमें ना ज़माने की खबर
याद अब कुछ ना रहा भूल जाने के लिये
हम तो पूरी तरह हो चुके हैं ना तवाँ
सिर्फ कुछ सांसे बची हैं लुटाने के लिये
शोख जी नहीं जाम हाथों में कभी
देखना ही है बहुत लड़खड़ाने के लिये
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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