जगमग होगी रातें सारी, दीपमालिका सज जाएगी। ऊँची-ऊँची अटालिकाएँ, रोशनी में खूब सज जाएगी। तब धरती के किसी कोने में, तम का पसरा अँधियारा हो, माटी का एक दीपक उठा के वहाँ तुम जला कर रख देना, हाँ एक दीया तुम जला देना। जब त्योहारों पर बने पकवान, सज-धज जाएँ सारी दुकान। मुँह मीठा करके [...]
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उनके घर भी दीया जले
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जीने का मैं ऐसे हुनर सीख पाया हूँ
जीने का मैं ऐसे हुनर सीख पाया हूँ, हजारों गम लेकर भी मुस्कराया हूँ। ईश्वर ने ये अमूल्य जीवन दिया है मुझे, बस इसी बात का जश्न मनाता आया हूँ। इस कलम पर माँ सरस्वती की कृपा से अपने जज़्बातों को मै ज़ाहिर कर पाया हूँ। अपने शब्दों को एक माला में पिरोकर, गीत गज़ल [...] More -
खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे
खेल नफरत का हम चलने नहीं देंगे, बेवक्त तो यह मौसम बदलने नहीं देंगे। बड़ी मशक्कत के बाद बस्तियों में उजाले हैं, दोपहर के इस सूरज को हम ढलने नहीं देंगे। सब धर्मों के लोगों ने जिसे मिलकर गुनगुनाया है, खुशियों के उस गीत को, गम में बदलने नहीं देंगे। सब मिलकर मेरी आवाज में [...] More -
मुझ पर भी अब मदहोशी छाने लगी
मुझ पर भी अब मदहोशी छाने लगी, मेरे घर ये हवा मैखानों से आने लगी। रात ढले अब तनहाईयाँ पसरने लगी, इक बार फिर याद तेरी सताने लगी। तेरा इक ख्याल हौले से छूकर गया मुझे, ठहरे इस दिल की धड़कन कंपकंपाने लगी। इन दीवारों ने भी आज जिक्र छेड़ दिया तेरा, कमरे में सजी [...] More -
लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे
लोग मुझको दुनिया के बचकाने लगे, अंधेरों के लिए सूरज को धमकाने लगे। बंजर जमीं पर फसल उगाने की बात चली, चुनावी बादल अब शहर पर मंडराने लगे। हर मज़हब की अपनी अलग दुकान लगी, कोयल तो ठीक है, कौए भी अब गाने लगे। हर तरफ चमचागिरी, चापलूसी के बादल, खुद्दार मौसम तो आने से [...] More -
घर को बड़ी ही राहत मिली
घर को बड़ी ही राहत मिली, जब इन दीवारों को छत मिली। इक बहुत बड़ी मिल्कियत मिली, बच्चे को माँ के रूप मे जन्नत मिली। शैतान को तो कड़ी सज़ा मिली, पर मुंसिफ को बड़ी तोहमत मिली। हर चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस मिली, हमें सुरक्षित चलने की नसीहत मिली। मजदूर को छोड़ सब को राहत [...] More -
कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं
कद परछाइयों के ही बड़े हुए हैं, नादां समझ रहे है कि हम बड़े हुए हैं। वो आसमान और इस धरती के इतर, खुद इक अलग जमीं पे खड़े हुए हैं। पूजे हम भी जाएंगे इस इंतजार में, खेत की मुंडेर पर कुछ पत्थर गढ़े हुए हैं। रंग मिलता है अपना भी कोयल से, सोच, [...] More -
फिर वही माझी खड़ा है फिर वही पतवार मेरी
कश्तियों ने आज तट से फिर मुझे गुंजन सुनाई फिर कोई ललकार तट की धारियों से छन के आयी सिंधु की अवगाहना के स्वर घुमड़ते ज्वार जैसे प्रश्न की अभ्यर्थनाएँ जाए बस उस पार कैसे । उर्मिया जब राह में नित तांडवी अलाप गाए ओर घन की रागिनी भी राह में जब नित्य आये । [...] More -
रूह हो तुम!
बड़ी हैरत में हूँ खाली कैनवास पर तो मन रेखाएँ खींच लेता है कूँचियाँ क्यों सहम जाती है उतर नही पाते कैनवास पर क्योंकि तुम रंग नहीं रूह ही हो तुम तो मन के भीतर ही अमिट छबि में महफूज हो बने रहो सदा-सदा - रामनारायण सोनी नोट: यह छ्न्द रामनारायण सोनी जी द्वारा ईजाद [...] More