• सूरज की दरकार

    तुम्हारी छटपटाहट देखी नहीं जाती मुझसे गुजरे वक़्त ने जो तुम पर जुल्म ढाए उन सब का बदला मैजूदा वक़्त से लेना ठीक नहीं अपनों से लड़ रही हो या अपने-आप से जानता हूं जब तुम चलना सीख रही थी तो किसी ने तुम्हें अंगुली पकड़कर सहारा नहीं दिया ठोकरें खाकर ही चलना सीखा जाता [...] More
  • एक हुनर पर कविता, इरशाद अज़ीज़

    उसकी ख़ामोशी पे

    उसकी ख़ामोशी पे कविता गीत ग़ज़ल कैसे लिखूं न जाने क्या-क्या है उसके दिल में मैं आख़िर सोचूं भी तो क्या उसकी ख़ामोशी जब टूटेगी वो जब भी मुस्कराएगी उसकी हर बात का मतलब दुनिया अलग लगाएगी उसका देखना क़यामत उसका चलना क़यामत उसका बोलना क़यामत न जाने कितनी क़यामतें टूटती हैं उस पे हर [...] More
  • काबिल होने पर कविता, इरशाद अज़ीज़

    सुनो हां…तुम

    सुनो! हां...तुम मैं तुम से ही मुख़ातिब हूं तुम्हारी मुस्कराहट में जो दर्द छुपा है उसका कुछ हिस्सा मुझे दे दो | या फिर कह दो मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं सुनो! तुम्हारे दर्दों-ग़म पर अपनी ख़ुशियां वारना चाहता हूं कब से गुनहगार हूं माफ़ी का तलबगार हूं सुनो! मेरा होना तुम्हारे बग़ैर बेमानी लगता है [...] More
  • वह चुप रहती है

    वह चुप रहती है तो बोलती हैं उसकी आंखें सुनाती हैं अनकहे किस्से-कहानियां जो उसके मन ने कही उसने सुनी नहीं उतर सकी अब तक काग़ज़ पर शायद इसलिए कोई पढ़ ना ले या फिर शब्दों में बंधना नहीं चाहती वह जानती होगी चुप रहने का सुख | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की [...] More
  • तुम्हारी आंखों में

    तुम्हारी आंखों में मैं अपने ख़्वाबों के गुलशन सजाता हूं कहो ख़ामोश क्यूं हो तुम भी तो मेरे ख़्वाब देखती हो सोचती हो मुझे मेरे घर का नक्शा रोज क़ाग़ज़ पर बनाती हो मिटा देती हो पोंछ लेती हो अपने आंसू जब तुम रोती हो तो भीग जाते हैं मेरी डायरी के पन्ने फैल जाती [...] More
  • तुम्हारा मौन

    तुम्हारा मौन उसकी मुस्कराहट के ख़िलाफ़ जंग का ऐलान है या फिर ख़ुद की हक़ीकत जानने के बाद का गुस्सा अपने ही ख़िलाफ़ अगर यह झूठ है तो सच क्या है तुम्हारी ख़ामोशी या उसकी मुस्कराहट जो तुम्हें पसंद नहीं | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] [...] More
  • औरत की ज़िंदगी पर कविता, इरशाद अज़ीज़

    तुम धरती हो

    तुम धरती हो रचती हो आसमान के सपने बुझाती हो उसकी प्यास तुम्हारे ही दम से जगमगा उठते हैं उसके चांद-तारे-सूरज खिलाती हो फूल भरती हो जीवन के रंग मगर तुम्हारी ज़िन्दगी बदरंग सवाल तो करना ही होगा आकाश से | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] [...] More
  • बदलते समय के साथ

    बदलते समय के साथ तुम्हें भी बदलना होगा तोड़ने होंगे अपने मन के सदियों से बन्द दम घोटते उन रिवाज़ों के दरवाज़े और रोशनदान लेनी होगी तुम्हें खुल के सांस गाने होंगे मन के गीत उड़ाने होंगे अपने डर के परिंदे यह आकाश यह ज़मीन यह दुनिया सब तुम्हारे हैं सब-कुछ तुम्हारा तुम रचती हो [...] More
  • दिल की बात पर कविता, इरशाद अज़ीज़

    वह नहीं बुलाता है

    वह नहीं बुलाता है तो जाते ही क्यूं हो उसके सामने और जब जाते हो तो शिकायत कैसी वह कुछ भी तो नहीं कहता कभी किसी को फिर यह ग़ुस्सा यह बौखलाहट कैसी जब सवाल तुम्हारे हैं तो जवाब भी देने होंगे नहीं दे सकते तो छोड़ दो उसके सामने जाना मान लो अपनी हार [...] More
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