• आईने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    आइना सच बोलता है

    आइना सच बोलता है राज़ सबके खोलता है जानता जब कुछ नहीं तो बीच में क्यों बोलता है फायदा जब कुछ नहीं तो फिर उधर क्यों डोलता है देख साहस झूठ का तू यार सच को तोलता है चार सू सूखा ही सूखा और पानी ढोलता है दोस्तों को तू लड़ाकर क्यों ज़हर यूँ घोलता [...] More
  • विवाह शादी इश्तिहार हो गये है

    विवाह शादी इश्तिहार हो गये है रिश्ते नाते सब व्यापार हो गये है। वृद्धाश्रम मे रहने की हमे दी सज़ा, हम बच्चो के ही गुनाहगार हो गए है। हर गुलशन में नफरत का माहौल है, सारे फूल अंदर से खार हो गए है। रिटायमेंट के बाद जिंदगी का आलम है, सप्ताह के सारे दिन इतवार [...] More
  • ज़माने पर कविता, पी एल बामनिया

    साए को तरसता

    साए को तरसता शज़र देखा, कतरे को मचलता समंदर देखा। गुज़रे जमाने का ज़खीरा मिला, झाँक कर जब खुद के अंदर देखा। ज़माने मे हमने उल्टा मंजर देखा, मदारी को नचाता बंदर देखा। लबों पर झरते थे फूल जिसके, उसके दिल मे छुपा खंजर देखा। जिनके घर दौलत की फसल उगी, उनका दिल बडा ही [...] More
  • चल साँझ हो गई है

    चल साँझ हो गई है निकले गगन पे तारे मझधार में सफ़ीना माझी लगा किनारे इतने बड़े जहाँ में है कौन अब हमारा जो साथ में हमारे थोड़ा समय गुज़ारे ये ज़िन्दगी हमारी कैसे फिसल रही है धुंधली हुई नज़र है दीखें नहीं नज़ारे कब आयेगा बुलावा हमको बता दे तेरा दिखता नहीं कहीं तू [...] More
  • बरसा नहीं निकल गया

    बरसा नहीं निकल गया, जुल्मी बादल मीत क्या इसे अब नहीं रही, धरती माँ से प्रीत मत तड़फा ऐसे हमें, मेघ बरस घनघोर ताल सभी सूखे यहाँ, पंछी करें न शौर चुप क्यों बैठा मेघ तू, बरस मूसलाधार सारे प्राणी रो रहे, कुछ तो कर उपकार ताक रहा आकाश को, हुई नहीं बरसात पूछ रहा [...] More
  • मेघा पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    मेघा रे मेघा

    मेघा रे मेघा, तु जम के बरस जा रे प्यासी धरती को भीगो के जा रे। रीते है सभी देख ताल-तलैया रे सुखे पडे सभी खेत-बगियाँ रे। तु सबकी प्यास अब बूझा जा रे मेघा....... सबके मन में आस जग गई रे बदली नभ में ठहर गई रे। उमड़ घूमड कर तु बरस जा रे [...] More
  • पहले से जल रही है

    पहले से जल रही है यह धरा ईष्या, द्वेष की अग्नि से धरा तु नभ से और अँगारे न बरसा हर शख्स हो रहा है मरा-मरा। लोभ, लालच की लपेटो ने यहाँ इँसानियत खाक कर रख दी यहाँ उठ रहा है हर तरफ धुआँ -धुआँ हर शख्स यहाँ है अब डरा-डरा। धू-धू -धू-धू, जल रही [...] More
  • दर्पण पर कविता, अवधेश कुमार 'अवध'

    दर्पण की व्यथा

    जो जैसा मेरे दर आता। ठीक हूबहू खुद को पाता।। फिर मुझपर आरोप लगाता। पक्षपात कह गाल बजाता।। मैं हँसता वह जल भुन जाता। ज्यों दाई से गर्भ छुपाता।। अदल बदल मुखड़े लगवाता। रंग रसायन नित पुतवाता।। शिशु सा नंगा रूप दिखाता। इठलाता एवं शर्माता।। झूठ बोलने को उकसाता। सच्चाई से नज़र चुराता।। लोभ मोह [...] More
  • जीवन सफल बनाएगा

    नारी का मुश्किल जीवन नर का सामर्थ्य बढ़ाएगा, सहनशक्ति की सबल मूर्ति से कौन भला टकराएगा। कभी सफलता को पाकर मदहोश नहीं होना यारों, लाख ढँके बादल फिर भी सूरज दिन लेकर आएगा। आज नहीं तो कल मुझको मेरी मंजिल मिल जाएगी, किन्तु राह में बहुतों चेहरों से नकाब उठ जाएगा। आपस के तू तू [...] More
Updating
  • No products in the cart.