बरसा नहीं निकल गया, जुल्मी बादल मीत क्या इसे अब नहीं रही, धरती माँ से प्रीत मत तड़फा ऐसे हमें, मेघ बरस घनघोर ताल सभी सूखे यहाँ, पंछी करें न शौर चुप क्यों बैठा मेघ तू, बरस मूसलाधार सारे प्राणी रो रहे, कुछ तो कर उपकार ताक रहा आकाश को, हुई नहीं बरसात पूछ रहा है राम से, कब होगी परभात बादल भी नेता बना, मीत जान ये बात बिन रिश्व़त करता नहीं,देख कहीं बरसात – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बरसा नहीं निकल गया
बरसा नहीं निकल गया, जुल्मी बादल मीत
क्या इसे अब नहीं रही, धरती माँ से प्रीत
मत तड़फा ऐसे हमें, मेघ बरस घनघोर
ताल सभी सूखे यहाँ, पंछी करें न शौर
चुप क्यों बैठा मेघ तू, बरस मूसलाधार
सारे प्राणी रो रहे, कुछ तो कर उपकार
ताक रहा आकाश को, हुई नहीं बरसात
पूछ रहा है राम से, कब होगी परभात
बादल भी नेता बना, मीत जान ये बात
बिन रिश्व़त करता नहीं,देख कहीं बरसात
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
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