सूख गए आँसू आँखों से हँसी उड़न छू होंठों से । हतप्रभ मौन खड़ा देखे है अनुच्चरित शब्दों से।। कोई कहता दाएँ जाओ कोई कहता है बाएँ । चौराहा भी मुझे घूरता वहीं खड़ी मैं बरसों से ।। युग बदला युगमापक नए गाँव शहर में बदल गए । हम ही घर न बना पाए आँचल उलझे काँटों से ।। नदियों ने भी रुख़ बदली लहरों पर अंगार ले चलीं । झर -झर झरते हरसिंगार आहत उपवन कहूँ कासे ।। – मंजरी पाण्डेय मंजरी पाण्डेय जी की हिंदी कविता [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सूख गए आँसू आँखों से
सूख गए आँसू आँखों से
हँसी उड़न छू होंठों से ।
हतप्रभ मौन खड़ा देखे है
अनुच्चरित शब्दों से।।
कोई कहता दाएँ जाओ
कोई कहता है बाएँ ।
चौराहा भी मुझे घूरता
वहीं खड़ी मैं बरसों से ।।
युग बदला युगमापक नए
गाँव शहर में बदल गए ।
हम ही घर न बना पाए
आँचल उलझे काँटों से ।।
नदियों ने भी रुख़ बदली
लहरों पर अंगार ले चलीं ।
झर -झर झरते हरसिंगार
आहत उपवन कहूँ कासे ।।
– मंजरी पाण्डेय
मंजरी पाण्डेय जी की हिंदी कविता
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