अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ एक इक ज़ख़्म को चेहरे पे सजा लाया हूँ देख चेहरे की इबारत को खुरचने के लिए अपने नाख़ुन ज़रा कुछ और बढ़ा लाया हूँ बेवफ़ा लौट के आ देख मिरा जज़्बा-ए-इश्क़ आँसुओं से तिरी तस्वीर बना लाया हूँ मैं ने इक शहर हमेशा के लिए छोड़ दिया लेकिन उस शहर को आँखों में बसा लाया हूँ इतनी ग़फ़लत की भी नींद अच्छी नहीं होती है ऐ चराग़ो उठो देखो मैं ज़िया लाया हूँ – अज़्म शाकरी अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल अज़्म शाकरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ
एक इक ज़ख़्म को चेहरे पे सजा लाया हूँ
देख चेहरे की इबारत को खुरचने के लिए
अपने नाख़ुन ज़रा कुछ और बढ़ा लाया हूँ
बेवफ़ा लौट के आ देख मिरा जज़्बा-ए-इश्क़
आँसुओं से तिरी तस्वीर बना लाया हूँ
मैं ने इक शहर हमेशा के लिए छोड़ दिया
लेकिन उस शहर को आँखों में बसा लाया हूँ
इतनी ग़फ़लत की भी नींद अच्छी नहीं होती है
ऐ चराग़ो उठो देखो मैं ज़िया लाया हूँ
– अज़्म शाकरी
अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल
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