वो ग़रीबी से हर रोज़ मरता रहा सर नगीने जड़ा ताज सजता रहा राजनीति का स्तर है ऐसा गिरा आम इंसान इसमें उलझता रहा रोटीयों के लिए हम तरसते रहे और गोदाम में धान सड़ता रहा बेटियाँ ब्याह की चाह में ही रहीं बाप बूढ़ा रक़म को भटकता रहा राह दुशवार भी हर क़दम पर मिली ‘शाद’ गिरता रहा और सम्भलता रहा – शाद उदयपुरी ‘शाद’ जी की नई रचनाओं को पढ़ने के लिए यहाँ फॉलो करें – गरीबी पर शायरी हिंदी में [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बाप बूढ़ा रक़म को भटकता रहा
वो ग़रीबी से हर रोज़ मरता रहा
सर नगीने जड़ा ताज सजता रहा
राजनीति का स्तर है ऐसा गिरा
आम इंसान इसमें उलझता रहा
रोटीयों के लिए हम तरसते रहे
और गोदाम में धान सड़ता रहा
बेटियाँ ब्याह की चाह में ही रहीं
बाप बूढ़ा रक़म को भटकता रहा
राह दुशवार भी हर क़दम पर मिली
‘शाद’ गिरता रहा और सम्भलता रहा
– शाद उदयपुरी
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