महबूब की गलियों से ये तहज़ीब आ गयी मोहब्बत से मुझे जीने की तरकीब आ गयी क़दमों की तेरी चाल से मेरा हाल यूँ हुआ आहात की झुरमुटों से वो करीब आ गयी – डॉ. विनोद कुमार मिश्र ‘कैमूरी’ महबूब पर शायरी हिंदी में [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
महबूब की गलियों से ये तहज़ीब आ गयी
महबूब की गलियों से ये तहज़ीब आ गयी
मोहब्बत से मुझे जीने की तरकीब आ गयी
क़दमों की तेरी चाल से मेरा हाल यूँ हुआ
आहात की झुरमुटों से वो करीब आ गयी
– डॉ. विनोद कुमार मिश्र ‘कैमूरी’
महबूब पर शायरी हिंदी में
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