बच्चा जवां हुआ है, गोदी में जिसकी पल के है देखता उसी को, तेवर बदल-बदल के माँ के कदम के नीचे, रहती है देख जन्नत जाती है हर मुसीबत, उसकी दुआ से टल के अपने लिए न सोचा, उसने बचाया सबको परिवार की चिमनियों, औ भट्टियों में जल के फँस जायेगा कबूतर, फिर जाल में सुनहरे इक बार बस दोबारा, दाने बिछाओ छल के कह दो की मन लगाकर कर्त्तव्य को निभाएँ बैठे हैं लोग जो भी, आशा में सिर्फ फल के संकल्प हो जो मन में, मजबूत हो इरादा आएगी कामयाबी, खुद ही से पास चल के जीवन में जो जुटाया, रह जायेगा यहीं पर जाना पड़ेगा इक दिन, हाथों को अपने मलके अनुभव की बात बस-बस ये, ‘गोविन्द’ जानता है जिसको सफल है होना, चेहरे से उसके छलके – गोविन्द व्यथित गोविन्द व्यथित जी की ग़ज़ल [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बच्चा जवां हुआ है, गोदी में जिसकी पल के
बच्चा जवां हुआ है, गोदी में जिसकी पल के
है देखता उसी को, तेवर बदल-बदल के
माँ के कदम के नीचे, रहती है देख जन्नत
जाती है हर मुसीबत, उसकी दुआ से टल के
अपने लिए न सोचा, उसने बचाया सबको
परिवार की चिमनियों, औ भट्टियों में जल के
फँस जायेगा कबूतर, फिर जाल में सुनहरे
इक बार बस दोबारा, दाने बिछाओ छल के
कह दो की मन लगाकर कर्त्तव्य को निभाएँ
बैठे हैं लोग जो भी, आशा में सिर्फ फल के
संकल्प हो जो मन में, मजबूत हो इरादा
आएगी कामयाबी, खुद ही से पास चल के
जीवन में जो जुटाया, रह जायेगा यहीं पर
जाना पड़ेगा इक दिन, हाथों को अपने मलके
अनुभव की बात बस-बस ये, ‘गोविन्द’ जानता है
जिसको सफल है होना, चेहरे से उसके छलके
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की ग़ज़ल
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