जज़्बातों के सरस – सरोवर, पर किसने डाका डाला, टूट गईं क्यों प्यार की लड़ियाँ तोड़़ी है किसने माला? जिन रिश्तों को सींच, पूर्वजों ने गुलशन गुलजार किया, आग लगायी उस चिराग ने, स्नेह लुटा जिसको पाला। प्रात काल में बाल सूर्य को स्नेह अर्घ्य से सींचा था, चला गया जब शाम हुई तो, आवारा बन गोपाला। जिसके उलझे केशों को भी, फौरन ही सुलझाते थे, उसने नेह तन्तु को लेकर, बुन डाला मकड़ी – जाला। अवध चेतना में आओ रे, दुनिया बदल रही पल पल, हाय! स्वार्थ के कुटिल दीमकों ने कर डाला घोटाला। –अवधेश कुमार ‘अवध’ अवधेश कुमार 'अवध' जी की कविता अवधेश कुमार 'अवध' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जज़्बातों के सरस – सरोवर
जज़्बातों के सरस – सरोवर, पर किसने डाका डाला,
टूट गईं क्यों प्यार की लड़ियाँ तोड़़ी है किसने माला?
जिन रिश्तों को सींच, पूर्वजों ने गुलशन गुलजार किया,
आग लगायी उस चिराग ने, स्नेह लुटा जिसको पाला।
प्रात काल में बाल सूर्य को स्नेह अर्घ्य से सींचा था,
चला गया जब शाम हुई तो, आवारा बन गोपाला।
जिसके उलझे केशों को भी, फौरन ही सुलझाते थे,
उसने नेह तन्तु को लेकर, बुन डाला मकड़ी – जाला।
अवध चेतना में आओ रे, दुनिया बदल रही पल पल,
हाय! स्वार्थ के कुटिल दीमकों ने कर डाला घोटाला।
–अवधेश कुमार ‘अवध’
अवधेश कुमार 'अवध' जी की कविता
अवधेश कुमार 'अवध' जी की रचनाएँ
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