चुप्पी साधे
जब व्यक्ति मौन होता है
मौन मे ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
दूसरों को जानने से
पहले खु़द को जानो
बाहर से जो हँसते
उनका दर्द भी पहचानो
दर्द की तहों में ही
उजाला होता है
मौन में ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
हिय में सबके
प्रीत का घर है
उसका पट सब खोलो
छोड़ के सारे भेदभाव तुम
सब से रिश्ता जोड़ो
ऐसे ही मन का कवि
निराला होता है
मौन में ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
बूंद- बूंद मिल बनता सागर
शब्द -शब्द मिल बने विचार
शब्दों का सागर ही कवि को
देता एक रचना संसार
शब्द में ही अर्थ का
शिवाला होता है
मौन में ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
चुप्पी साधे
चुप्पी साधे
जब व्यक्ति मौन होता है
मौन मे ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
दूसरों को जानने से
पहले खु़द को जानो
बाहर से जो हँसते
उनका दर्द भी पहचानो
दर्द की तहों में ही
उजाला होता है
मौन में ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
हिय में सबके
प्रीत का घर है
उसका पट सब खोलो
छोड़ के सारे भेदभाव तुम
सब से रिश्ता जोड़ो
ऐसे ही मन का कवि
निराला होता है
मौन में ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
बूंद- बूंद मिल बनता सागर
शब्द -शब्द मिल बने विचार
शब्दों का सागर ही कवि को
देता एक रचना संसार
शब्द में ही अर्थ का
शिवाला होता है
मौन में ही
प्रश्न का हवाला होता है ।
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें