ये धरती वीर राणा की शिवा के हौसले की है
ये वाजीराव की धरती मराठा भोसले की है
कि ये आजाद की धरती भगत उस्मान की धरती
ये गौतम बुद्ध की धरती मदन की गोखले की है
ये धरती राम सीता की
ये कुन्ती कृष्ण गीता की
ये धरती वीर जननी है
कि पदमिन सी पुनीता की
हमारी स्वर्ग सी धरती ये सारा है गगन मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द बन्दे मातरम मेरा |
अगर हम चाहले तो इस हवा की साँस रुक जाये
अगर हम चाहले तो चांद धरती पर उतर आये
समुन्दर वर्फ वन जाये अगिन भी सर्द हो जाये
खड़ा गिरिराज भी कापे रधर जाये उधर जाये
कभी तलवार पर पानी
कभी असिधार पर पानी
कभी इस पार पानी तो
कभी उस पार है पानी
यहाँ का सत्य शिव होता यहाँ का सुन्दरम मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द बन्देमातरम मेरा |
समय था वह कि जब कोई यहाँ बेखौफ आता था
समय था वह कि वनजारा हमारा घर जलाता था
हजारों घाव सीने पर अभी भी दाग हैं बाकी
कुचल दो सर सभी उनके छिपे जो नाम है बाकी
कभी फुंकार वन जाओ
कभी हुँकार बन जाओ
कभी लो चक्र माधव का
कभी टंकार बन जाओ
कहो उन वुजदिलों से, दूर हट ये है चमन मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द वन्दे मातरम् मेरा |
हमारी सरहदों पर आज चिनगारी सुलगती है
हमारी शान्ति दुनियाँ आज कमजोरी समझती है
अतिथियों का किया स्वागत सभी से प्रेम से मिलते
इसी का यह हुआ परिणाम की कायर समझती है
उठो दुश्मन को ललकारो
कि सिमा पार हुंकारो
केसरिया रंग का साफा
सिरों पर आज फिर धारो
दिखा दो आज दुनिया को केसरिया है कफन मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द वन्दे मातरम मेरा |
हमारी सरहदों पर वीर अभिमन्यू उबलता है
हमारे खून से बलिदान का संस्कार पलता है
शिवा, राणा, अमर, साँगा अभी भी सरहदों पर हैं
कि शंकर का विनाशक आज डमरू भी मचलता है
उठो अंगार वन जाओ
करारी मार बन जाओ
अरे आतंकियों के वास्ते
अंगार बन जाओ
इस अनोखे प्रलय में घिरा जूझता
चल रहा हर कदम लड़खड़ाता हुआ
इस तरह खेल जीवन का चलता रहा
जीते तुम हारता मैं रहा रात भर ||
रात काली घटाओं से घिरती रही |
मैं तुम्हें ढ़ूँढ़ता रह गया रात भर ||
हमारी धड़कनों का शब्द
हमारी धड़कनों का शब्द बन्दे मातरम मेरा |
ये धरती वीर राणा की शिवा के हौसले की है
ये वाजीराव की धरती मराठा भोसले की है
कि ये आजाद की धरती भगत उस्मान की धरती
ये गौतम बुद्ध की धरती मदन की गोखले की है
ये धरती राम सीता की
ये कुन्ती कृष्ण गीता की
ये धरती वीर जननी है
कि पदमिन सी पुनीता की
हमारी स्वर्ग सी धरती ये सारा है गगन मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द बन्दे मातरम मेरा |
अगर हम चाहले तो इस हवा की साँस रुक जाये
अगर हम चाहले तो चांद धरती पर उतर आये
समुन्दर वर्फ वन जाये अगिन भी सर्द हो जाये
खड़ा गिरिराज भी कापे रधर जाये उधर जाये
कभी तलवार पर पानी
कभी असिधार पर पानी
कभी इस पार पानी तो
कभी उस पार है पानी
यहाँ का सत्य शिव होता यहाँ का सुन्दरम मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द बन्देमातरम मेरा |
समय था वह कि जब कोई यहाँ बेखौफ आता था
समय था वह कि वनजारा हमारा घर जलाता था
हजारों घाव सीने पर अभी भी दाग हैं बाकी
कुचल दो सर सभी उनके छिपे जो नाम है बाकी
कभी फुंकार वन जाओ
कभी हुँकार बन जाओ
कभी लो चक्र माधव का
कभी टंकार बन जाओ
कहो उन वुजदिलों से, दूर हट ये है चमन मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द वन्दे मातरम् मेरा |
हमारी सरहदों पर आज चिनगारी सुलगती है
हमारी शान्ति दुनियाँ आज कमजोरी समझती है
अतिथियों का किया स्वागत सभी से प्रेम से मिलते
इसी का यह हुआ परिणाम की कायर समझती है
उठो दुश्मन को ललकारो
कि सिमा पार हुंकारो
केसरिया रंग का साफा
सिरों पर आज फिर धारो
दिखा दो आज दुनिया को केसरिया है कफन मेरा
हमारी धड़कनों का शब्द वन्दे मातरम मेरा |
हमारी सरहदों पर वीर अभिमन्यू उबलता है
हमारे खून से बलिदान का संस्कार पलता है
शिवा, राणा, अमर, साँगा अभी भी सरहदों पर हैं
कि शंकर का विनाशक आज डमरू भी मचलता है
उठो अंगार वन जाओ
करारी मार बन जाओ
अरे आतंकियों के वास्ते
अंगार बन जाओ
इस अनोखे प्रलय में घिरा जूझता
चल रहा हर कदम लड़खड़ाता हुआ
इस तरह खेल जीवन का चलता रहा
जीते तुम हारता मैं रहा रात भर ||
रात काली घटाओं से घिरती रही |
मैं तुम्हें ढ़ूँढ़ता रह गया रात भर ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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