अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध । प्रीत-प्यार क बीच में, ये कैसी दुर्गन्ध ।। ये कैसी दुर्गन्ध, समझ में बात न आई; चहुँ-दिश काली रात, समय कैसा ये भाई । सुनो! कहे जगदीश, रखो हिय अपना पावन; नाचेंगे सम्बन्ध, हँसेगा फिर अपनापन ।। – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के छंद जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध
अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध ।
प्रीत-प्यार क बीच में, ये कैसी दुर्गन्ध ।।
ये कैसी दुर्गन्ध, समझ में बात न आई;
चहुँ-दिश काली रात, समय कैसा ये भाई ।
सुनो! कहे जगदीश, रखो हिय अपना पावन;
नाचेंगे सम्बन्ध, हँसेगा फिर अपनापन ।।
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के छंद
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