भाव तो बराबर सितम ढा रहे हैं आजकल इसलिए ही ग़म खा रहे हैं परिवहन की बढ़ी दरों की वजह से न तुम आ रहे हो, न हम आ रहे हैं रहे साथ जब तक समझ ना सके हम अब याद तुम्हारे करम आ रहे हैं उनकी हैं पांचो ऊंगली घी में जो हाथों में भरकर चिलम ला रहे हैं सब्र से काम लो सब हो जाएगा वो गये हैं नया इलम ला रहे हैं उच्चारण जिनका गलत है अभी तक वो मोटी-मोटी रकम पा रहे हैं – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भाव तो बराबर
भाव तो बराबर सितम ढा रहे हैं
आजकल इसलिए ही ग़म खा रहे हैं
परिवहन की बढ़ी दरों की वजह से
न तुम आ रहे हो, न हम आ रहे हैं
रहे साथ जब तक समझ ना सके हम
अब याद तुम्हारे करम आ रहे हैं
उनकी हैं पांचो ऊंगली घी में जो
हाथों में भरकर चिलम ला रहे हैं
सब्र से काम लो सब हो जाएगा
वो गये हैं नया इलम ला रहे हैं
उच्चारण जिनका गलत है अभी तक
वो मोटी-मोटी रकम पा रहे हैं
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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