दिल में हसरत कोई बची ही नहीं आग ऐसी लगी बुझी ही नहीं उस ने जब ख़ुद को बे-नक़ाब किया फिर किसी की नज़र उठी ही नहीं जैसा इस बार खुल के रोए हम ऐसी बारिश कभी हुई ही नहीं ज़िंदगी को गले लगाते क्या ज़िंदगी उम्र-भर मिली ही नहीं मुंतज़िर कब से चाँद छत पर है कोई खिड़की अभी खुली ही नहीं मैं जिसे अपनी ज़िंदगी समझा सच तो ये है वो मेरी थी ही नहीं -अज़्म शाकरी अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल अज़्म शाकरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दिल में हसरत कोई बची ही नहीं
दिल में हसरत कोई बची ही नहीं
आग ऐसी लगी बुझी ही नहीं
उस ने जब ख़ुद को बे-नक़ाब किया
फिर किसी की नज़र उठी ही नहीं
जैसा इस बार खुल के रोए हम
ऐसी बारिश कभी हुई ही नहीं
ज़िंदगी को गले लगाते क्या
ज़िंदगी उम्र-भर मिली ही नहीं
मुंतज़िर कब से चाँद छत पर है
कोई खिड़की अभी खुली ही नहीं
मैं जिसे अपनी ज़िंदगी समझा
सच तो ये है वो मेरी थी ही नहीं
-अज़्म शाकरी
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