दोनो बँधे हैं दुनियाँ की रीत में मजबूरियाँ इधर भी हैं, कुछ उधर भी दिल की बातें हैं आज उन्हें बतानी मिलने की चाहत इधर भी है, कुछ उधर भी न जाने कितनी सांसें हैं और बाक़ी धड़कने गिनती की इधर भी है, कुछ उधर भी –एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दोनो बँधे हैं दुनियाँ की रीत में
दोनो बँधे हैं
दुनियाँ की रीत में
मजबूरियाँ इधर भी हैं,
कुछ उधर भी
दिल की बातें हैं
आज उन्हें बतानी
मिलने की चाहत इधर भी है,
कुछ उधर भी
न जाने कितनी सांसें
हैं और बाक़ी
धड़कने गिनती की इधर भी है,
कुछ उधर भी
–एकता खान
एकता खान जी की कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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