कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा,
जाग उठा है देश कि अब इसका इतिहास बदलना होगा ||
चन्दन वन में पगपग पर फणिधर का हुआ वसेरा,
अब गुलाब की टहनी पर कांटो ने डाला डेरा ||
विष की गन्ध फैलती जाती मैला हुआ समीरन,
भौरों का गुन्जार बन्द है कलियों का उत्पीड़न ||
शान्ति चैन जो मिटा रहा उसका परिहास बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा ||
बाँहों पर आकाश उठाये जो धरती के पूत कहाते,
जीवन सिसकी में डूबा हो और शान्ति के दूत कहाते ||
जिनके माथे का श्रम सीकर गंगा यमुना सा लहराता,
आँसू से भीगी हो रोटी परवश घावों को सहलता ||
धरती का सपूत जागा है अब आकाश बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा ||
आश्वासान की रोटी खाकर नारों से कब प्यास बुझेगी,
जाति धर्म के आडम्बर से कब मन की गुत्थी सुलझेगी |
मानव तो बेचारा मानव, मानव का इतिहास एक है |
दुख में सब की भीगी पलके सुख में सबका हास एक है ||
मानवता जो मिटा रहा हो उसका विश्वास बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा |
सिंहासन की चाह नहीं है रोटी ही जिसका जीवन है,
करुणा से जो भरा हुआ है, आखों में जिसके सावन है |
थककर हार गया जीवन से जो समर्थ होकर निर्वल है,
कीचड़ में लिपटा है लेकिन मन जिसका पवित्र निर्मल है ||
रोटी को जो तरस रहा उसका उच्छवास बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा ||
कलियों को जो खिला न पाये
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा,
जाग उठा है देश कि अब इसका इतिहास बदलना होगा ||
चन्दन वन में पगपग पर फणिधर का हुआ वसेरा,
अब गुलाब की टहनी पर कांटो ने डाला डेरा ||
विष की गन्ध फैलती जाती मैला हुआ समीरन,
भौरों का गुन्जार बन्द है कलियों का उत्पीड़न ||
शान्ति चैन जो मिटा रहा उसका परिहास बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा ||
बाँहों पर आकाश उठाये जो धरती के पूत कहाते,
जीवन सिसकी में डूबा हो और शान्ति के दूत कहाते ||
जिनके माथे का श्रम सीकर गंगा यमुना सा लहराता,
आँसू से भीगी हो रोटी परवश घावों को सहलता ||
धरती का सपूत जागा है अब आकाश बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा ||
आश्वासान की रोटी खाकर नारों से कब प्यास बुझेगी,
जाति धर्म के आडम्बर से कब मन की गुत्थी सुलझेगी |
मानव तो बेचारा मानव, मानव का इतिहास एक है |
दुख में सब की भीगी पलके सुख में सबका हास एक है ||
मानवता जो मिटा रहा हो उसका विश्वास बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा |
सिंहासन की चाह नहीं है रोटी ही जिसका जीवन है,
करुणा से जो भरा हुआ है, आखों में जिसके सावन है |
थककर हार गया जीवन से जो समर्थ होकर निर्वल है,
कीचड़ में लिपटा है लेकिन मन जिसका पवित्र निर्मल है ||
रोटी को जो तरस रहा उसका उच्छवास बदलना होगा,
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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