वगुलो की चल पड़ी दुकान, हंस ताल छोड़कर चले गये, मरघट सी लगती सिवान, लाशों पर गिध्द सब झपट पड़े | वासन्ती धरती का मुँह पीला हो गया, आवारा पतझर मधुमासों पर सो गया, सिहर उठे कलियों के प्रान, हंस ताल छोड़कर चले गये | अतड़ी को बाध दिया सागर की लहरों से, तार तार सपने सब आतंकी खबरो से, कैसे बच पाये सम्मान, हंस ताल छोड़कर चले गये | सुधि की अवोध कली कैसे बच पायेगी, नागफनी पसर गयी राह सिमट जायेगी | माली भी कितना अनजान, हंस ताल छोड़कर चले गये | सतरंगी इन्द्रधनुष अब तो प्रतिबंधित है, आसमान विक गया धरती अनुबन्धित है | संकट में आज देश गान हंस ताल छोड़कर चले गये | – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
वगुलो की चल पड़ी दुकान
वगुलो की चल पड़ी दुकान,
हंस ताल छोड़कर चले गये,
मरघट सी लगती सिवान,
लाशों पर गिध्द सब झपट पड़े |
वासन्ती धरती का मुँह पीला हो गया,
आवारा पतझर मधुमासों पर सो गया,
सिहर उठे कलियों के प्रान,
हंस ताल छोड़कर चले गये |
अतड़ी को बाध दिया सागर की लहरों से,
तार तार सपने सब आतंकी खबरो से,
कैसे बच पाये सम्मान,
हंस ताल छोड़कर चले गये |
सुधि की अवोध कली कैसे बच पायेगी,
नागफनी पसर गयी राह सिमट जायेगी |
माली भी कितना अनजान,
हंस ताल छोड़कर चले गये |
सतरंगी इन्द्रधनुष अब तो प्रतिबंधित है,
आसमान विक गया धरती अनुबन्धित है |
संकट में आज देश गान
हंस ताल छोड़कर चले गये |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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