बाँट कर हमने हर ख़ुशी अपनी फिर निखारी है ज़िन्दगी अपनी ज़िन्दा जब तक ज़मीर अपना है अपना सूरज है रौशनी अपनी ये दिखावा तुम्हें मुबारक हो हम को काफ़ी है सादगी अपनी हम को जीना अगर नहीं आया कुछ कमी है तो है कमी अपनी जैसे चाहो गुज़ार दो यारो ज़िन्दगी है ये आपकी अपनी लफ़्ज़ गोया चमकते मोती हैं उसके आगे न इक चली अपनी अपने होने को गुनगुनाता हूं साथ फिर भी है ख़ामुशी अपनी आख़िरी वक़्त आ गया फिर भी ज़िन्दगी क्यूँ है अजनबी अपनी गाँव की ज़िन्दगी का मत पूछो दिन भी अपना है रात भी अपनी अपने अशआर में मिलूंगा तुम्हें हो ज़रूरत तुम्हें कभी अपनी देखो “इरशाद” ग़ौर से ख़ुद को कहाँ ले आई बेख़ुदी अपनी – इरशादअज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की ज़िन्दगी पर ग़ज़ल [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बाँट कर हमने हर ख़ुशी अपनी
बाँट कर हमने हर ख़ुशी अपनी
फिर निखारी है ज़िन्दगी अपनी
ज़िन्दा जब तक ज़मीर अपना है
अपना सूरज है रौशनी अपनी
ये दिखावा तुम्हें मुबारक हो
हम को काफ़ी है सादगी अपनी
हम को जीना अगर नहीं आया
कुछ कमी है तो है कमी अपनी
जैसे चाहो गुज़ार दो यारो
ज़िन्दगी है ये आपकी अपनी
लफ़्ज़ गोया चमकते मोती हैं
उसके आगे न इक चली अपनी
अपने होने को गुनगुनाता हूं
साथ फिर भी है ख़ामुशी अपनी
आख़िरी वक़्त आ गया फिर भी
ज़िन्दगी क्यूँ है अजनबी अपनी
गाँव की ज़िन्दगी का मत पूछो
दिन भी अपना है रात भी अपनी
अपने अशआर में मिलूंगा तुम्हें
हो ज़रूरत तुम्हें कभी अपनी
देखो “इरशाद” ग़ौर से ख़ुद को
कहाँ ले आई बेख़ुदी अपनी
– इरशादअज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की ज़िन्दगी पर ग़ज़ल
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