अविरल गंगा की जिद पकड़े
एक भगीरथ चला गया,
राजतंत्र के हाथों फिर से
आम नागरिक छला गया।
व्यथित हाल पर खुद के माता
हरपल नीर बहाती है,
मुँह बोले बेटों को उसपर
दया नहीं क्यों आती है।
रजत लेखनी चीख कह रही
वादा अपना याद करो,
गंदे नालों बाँधों से अब
सुरसरि को आज़ाद करो।।
भगीरथ चला गया
अविरल गंगा की जिद पकड़े
एक भगीरथ चला गया,
राजतंत्र के हाथों फिर से
आम नागरिक छला गया।
व्यथित हाल पर खुद के माता
हरपल नीर बहाती है,
मुँह बोले बेटों को उसपर
दया नहीं क्यों आती है।
रजत लेखनी चीख कह रही
वादा अपना याद करो,
गंदे नालों बाँधों से अब
सुरसरि को आज़ाद करो।।
–अवधेश कुमार रजत
अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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