जब भी हम एक हो जायें।
फिर से मालामाल हो जायें ।
जिन्दगी आसान हो जाऐ ।
वाद-विवाद बिना बढाऐ ।
बात की मर्म जानकर ।
प्यार से ही निभाया जाए ।
आपसी सहमति दिखाई जाए ।
शब्द जाल मे न उलझाया जाए ।
हर प्राणी का रूह एक है जानिए।
इसको किसे चीरकर दिखाया जाए ।
आओ नसीर प्यार को ओढ़ा और बिछाया जाए ।
संसार है क्रीड़ा स्थल ये सबको बतलाया जाए ।
मै हिन्दुस्तान हूं।
मिल्लत भाईचारा हो सबके लिए ।
प्यार का एक सहारा हो सबके लिए ।
मैं हिन्दुस्तान हूं ।
जिस्म में दिल ।
दिल मे प्यार की दास्तान हूं।
मैं हिन्दुस्तान हूं।
शाख शाख पर खिले फूल चमन में ।
खूशबू बिखेरे अमन का इस वतन में ।
मैं हिन्दुस्तान हूं ।
पर मेरी बात कहां कोई सुनने वाला ।
यदि सुन भी ले तो कौन यंहा गुनने वाला ।
मैं चिन्तित हूं आज अपनी हालत पर ।
कोई भी तो होता सिरधुनने वाला नसीर ।
फिर भी देखो मुस्कुराता हूं इतराता हूं इढलाता हूं ।
सबसे प्रेम करता हूं ।
मैं हिन्दुस्तान हूं।
मैं हिन्दुस्तान हूं।
जब भी हम एक हो जायें
जब भी हम एक हो जायें।
फिर से मालामाल हो जायें ।
जिन्दगी आसान हो जाऐ ।
वाद-विवाद बिना बढाऐ ।
बात की मर्म जानकर ।
प्यार से ही निभाया जाए ।
आपसी सहमति दिखाई जाए ।
शब्द जाल मे न उलझाया जाए ।
हर प्राणी का रूह एक है जानिए।
इसको किसे चीरकर दिखाया जाए ।
आओ नसीर प्यार को ओढ़ा और बिछाया जाए ।
संसार है क्रीड़ा स्थल ये सबको बतलाया जाए ।
मै हिन्दुस्तान हूं।
मिल्लत भाईचारा हो सबके लिए ।
प्यार का एक सहारा हो सबके लिए ।
मैं हिन्दुस्तान हूं ।
जिस्म में दिल ।
दिल मे प्यार की दास्तान हूं।
मैं हिन्दुस्तान हूं।
शाख शाख पर खिले फूल चमन में ।
खूशबू बिखेरे अमन का इस वतन में ।
मैं हिन्दुस्तान हूं ।
पर मेरी बात कहां कोई सुनने वाला ।
यदि सुन भी ले तो कौन यंहा गुनने वाला ।
मैं चिन्तित हूं आज अपनी हालत पर ।
कोई भी तो होता सिरधुनने वाला नसीर ।
फिर भी देखो मुस्कुराता हूं इतराता हूं इढलाता हूं ।
सबसे प्रेम करता हूं ।
मैं हिन्दुस्तान हूं।
मैं हिन्दुस्तान हूं।
–मोहम्मद नसरुल्लाह ‘नसीर बनारसी’
मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की रचनाएँ
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