बहुत हो चुकी पहचान रहने दो कुछ बातों से अनजान रहने दो छेड़ो ना तुम जज़्बात को मेरे हुआ तो हुआ अपमान रहने दो बाहर निकलेंगे बिखर जायेंगे दिल में दिल के अरमान रहने दो उन पर करो महरबानियां अपनी हम पर तो अब अहसान रहने दो कोई बात नहीं छीन लो धरती सिर्फ सर पर आसमान रहने दो चुल्लू में जल के मानिंद है धन इस पर इतना अभिमान रहने दो कहां उम्र भर तकलीफ रहती है कुछ दिन इन्हें मेहमान रहने दो रखो आसमाँ पर देवताओं को धरती पर बस इन्सान रहने दो – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बहुत हो चुकी
बहुत हो चुकी पहचान रहने दो
कुछ बातों से अनजान रहने दो
छेड़ो ना तुम जज़्बात को मेरे
हुआ तो हुआ अपमान रहने दो
बाहर निकलेंगे बिखर जायेंगे
दिल में दिल के अरमान रहने दो
उन पर करो महरबानियां अपनी
हम पर तो अब अहसान रहने दो
कोई बात नहीं छीन लो धरती
सिर्फ सर पर आसमान रहने दो
चुल्लू में जल के मानिंद है धन
इस पर इतना अभिमान रहने दो
कहां उम्र भर तकलीफ रहती है
कुछ दिन इन्हें मेहमान रहने दो
रखो आसमाँ पर देवताओं को
धरती पर बस इन्सान रहने दो
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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