दर्द हद से सिवा बढ़ता रहा और बढ़ना दवा बनता रहा हाल पूछा सभी ने यूँ मे’रा ज़ख्म नासूर सा होता रहा क्यूँ जुदा बोलिये मुझसे हुये मैं अकेला वफ़ा करता रहा आज तनहाइयाँ तुमसे मिलीं सोचकर आह मैं भरता रहा ख़्वाब में जब मिरे आने लगे क़ाफ़िला प्यार का चलता रहा तुम जफ़ा पे जफ़ा करते गये मैं दुआ पे दुआ करता रहा ‘शाद’ मेने कभी सोचा नहीं आपका प्यार भी धोखा रहा – शाद उदयपुरी शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दर्द हद से सिवा बढ़ता रहा
दर्द हद से सिवा बढ़ता रहा
और बढ़ना दवा बनता रहा
हाल पूछा सभी ने यूँ मे’रा
ज़ख्म नासूर सा होता रहा
क्यूँ जुदा बोलिये मुझसे हुये
मैं अकेला वफ़ा करता रहा
आज तनहाइयाँ तुमसे मिलीं
सोचकर आह मैं भरता रहा
ख़्वाब में जब मिरे आने लगे
क़ाफ़िला प्यार का चलता रहा
तुम जफ़ा पे जफ़ा करते गये
मैं दुआ पे दुआ करता रहा
‘शाद’ मेने कभी सोचा नहीं
आपका प्यार भी धोखा रहा
– शाद उदयपुरी
शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल
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