मैं सदा हँसता रहा हूँ इसलिए ज़िन्दा रहा हूँ हार कैसे मान लूँ मैं आप का चेला रहा हूँ बेवफ़ा बनकर रहे तुम मैं वफ़ा करता रहा हूँ आप से रिश्ता बनाकर आजतक पछता रहा हूँ दुश्मनों की कुछ न पूछो मैं उन्हें खलता रहा हूँ मार डाला था मुझे तो फिर भी मैं ज़िन्दा रहा हूँ राह में कोई न भटके दीप बन जलता रहा हूँ अब बढ़ो “जगदीश” आगे राह मैं दिखला रहा हूँ –जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की जीवन संघर्ष पर ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मैं सदा हँसता रहा हूँ
मैं सदा हँसता रहा हूँ
इसलिए ज़िन्दा रहा हूँ
हार कैसे मान लूँ मैं
आप का चेला रहा हूँ
बेवफ़ा बनकर रहे तुम
मैं वफ़ा करता रहा हूँ
आप से रिश्ता बनाकर
आजतक पछता रहा हूँ
दुश्मनों की कुछ न पूछो
मैं उन्हें खलता रहा हूँ
मार डाला था मुझे तो
फिर भी मैं ज़िन्दा रहा हूँ
राह में कोई न भटके
दीप बन जलता रहा हूँ
अब बढ़ो “जगदीश” आगे
राह मैं दिखला रहा हूँ
–जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की जीवन संघर्ष पर ग़ज़ल
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