जो बच गए हैं चराग़ उन को बचाए रक्खो मैं जानता हूँ हवा से रिश्ता बनाए रक्खो ज़रूर उतरेगा आसमाँ से कोई सितारा ज़मीन वालो ज़मीं पे पलकें बिछाए रक्खो अभी वहीं से किसी के ग़म की सदा उठेगी उसी दरीचे पे कान अपने लगाए रखो हमेशा ख़ुद से भी पुर-तकल्लुफ़ रहो तो अच्छा ख़ुद अपने अंदर भी एक दीवार उठाए रक्खो – अज़्म शाकरी अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल अज़्म शाकरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जो बच गए हैं चराग़ उन को बचाए रक्खो
जो बच गए हैं चराग़ उन को बचाए रक्खो
मैं जानता हूँ हवा से रिश्ता बनाए रक्खो
ज़रूर उतरेगा आसमाँ से कोई सितारा
ज़मीन वालो ज़मीं पे पलकें बिछाए रक्खो
अभी वहीं से किसी के ग़म की सदा उठेगी
उसी दरीचे पे कान अपने लगाए रखो
हमेशा ख़ुद से भी पुर-तकल्लुफ़ रहो तो अच्छा
ख़ुद अपने अंदर भी एक दीवार उठाए रक्खो
– अज़्म शाकरी
अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल
अज़्म शाकरी जी की रचनाएँ
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