हम बैठे घरो मे, कोई छाँव ढूँढ रहा कोई पथिक राह में, वट-वृक्ष ढूँढ रहा। बरस रहे है अंगारे, धरती तप रही भरी दूपहरी में कोई, तन जला रहा। सुख गए पेड सभी, कुछ काट दिए हरियाली का नामो निशान मिट रहा बूँद-बूँद पानी का ,हाहाकार मचा है बादल भी बिन बरसे, गुजर रहा है। भूखे पेट कैसे सोए बच्चे उसके यह सोच धुप में फल बेच रहा है। मिल जाए शीतल छाँव उसको कही सडक किनारे कोई वृक्ष-छाँव ढूँढ रहा है। – हेमा उदयपुरी हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कोई छाँव ढूँढ रहा
हम बैठे घरो मे, कोई छाँव ढूँढ रहा
कोई पथिक राह में, वट-वृक्ष ढूँढ रहा।
बरस रहे है अंगारे, धरती तप रही
भरी दूपहरी में कोई, तन जला रहा।
सुख गए पेड सभी, कुछ काट दिए
हरियाली का नामो निशान मिट रहा
बूँद-बूँद पानी का ,हाहाकार मचा है
बादल भी बिन बरसे, गुजर रहा है।
भूखे पेट कैसे सोए बच्चे उसके
यह सोच धुप में फल बेच रहा है।
मिल जाए शीतल छाँव उसको कही
सडक किनारे कोई वृक्ष-छाँव ढूँढ रहा है।
– हेमा उदयपुरी
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
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