मातृभूमि वह तीर्थ जहाँ माता रहती है ।
अपना सब कुछ वार हमें पैदा करती है ।।
तरुवर छायादार छत्र बन छाया करते ।
उमड़ घुमड़कर मेघ वारि बरसाया करते ।।
प्रथम गिरा का ज्ञान यहीं से हम सब पाते ।
नव रस के सब भाव हृदय में यहीं समाते ।।
कुछ भी हो कर्त्तव्य सहर्ष निभाना होगा ।
अवध न जाए हार,अवधपति!आना होगा ।।
अवधपति! आना होगा
मातृभूमि वह तीर्थ जहाँ माता रहती है ।
अपना सब कुछ वार हमें पैदा करती है ।।
तरुवर छायादार छत्र बन छाया करते ।
उमड़ घुमड़कर मेघ वारि बरसाया करते ।।
प्रथम गिरा का ज्ञान यहीं से हम सब पाते ।
नव रस के सब भाव हृदय में यहीं समाते ।।
कुछ भी हो कर्त्तव्य सहर्ष निभाना होगा ।
अवध न जाए हार,अवधपति!आना होगा ।।
– अवधेश कुमार ‘अवध’
मातृभूमि पर हिंदी कविता
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें