तुम एक गुलाब हो
लेकिन खिलने से डरती हो
जानता हूं कांटों के डर से
खिलना मुस्कराना नहीं छोड़ा जाता
तुम खिलोगी तो महक उठेगी
तुम्हारे मन की वादियां
गुनगुनाने लगेंगे भंवरे
गाने लगेंगे परिंदे मोहब्बत के गीत
कहीं दूर से तितलियों का हुजूम
आएगा तुम्हारी पेसानी का बोसा लेने
तुम खिलो
कि शबनम की बूंदें
तुम्हारे रुख़सार को छू लेना चाहती हैं
तुम खिलो
कि सुरज की किरणें
तुम्हें छूकर बिखरना चाहती हैं
तुम खिलो
कि आसमान निसार करना चाहता है
अपनी ख़ुशियों के मोती
भिगोना चाहता है तुम्हारे मन को
एक दुनिया मेरे दिल की
तुम्हारे खिलने के इंतज़ार में
बेचैन है कब से
तुम खिलो
कि खिल उठे
कायनात के तमाम मंज़र
तुम खिलो
कि तुम्हारे खिलने से
कोई नाज़ करे अपनी किस्मत पर
तुम खिलो
कि मायूस लौटने वाला सावन
कभी न लौटे पतझड़ |
तुम एक गुलाब हो
तुम एक गुलाब हो
लेकिन खिलने से डरती हो
जानता हूं कांटों के डर से
खिलना मुस्कराना नहीं छोड़ा जाता
तुम खिलोगी तो महक उठेगी
तुम्हारे मन की वादियां
गुनगुनाने लगेंगे भंवरे
गाने लगेंगे परिंदे मोहब्बत के गीत
कहीं दूर से तितलियों का हुजूम
आएगा तुम्हारी पेसानी का बोसा लेने
तुम खिलो
कि शबनम की बूंदें
तुम्हारे रुख़सार को छू लेना चाहती हैं
तुम खिलो
कि सुरज की किरणें
तुम्हें छूकर बिखरना चाहती हैं
तुम खिलो
कि आसमान निसार करना चाहता है
अपनी ख़ुशियों के मोती
भिगोना चाहता है तुम्हारे मन को
एक दुनिया मेरे दिल की
तुम्हारे खिलने के इंतज़ार में
बेचैन है कब से
तुम खिलो
कि खिल उठे
कायनात के तमाम मंज़र
तुम खिलो
कि तुम्हारे खिलने से
कोई नाज़ करे अपनी किस्मत पर
तुम खिलो
कि मायूस लौटने वाला सावन
कभी न लौटे पतझड़ |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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