बुझ रहे थे रफ़्ता रफ़्ता जो फ़सीलों के चराग़ आपने आकर जलाये वो उमीदों के चराग़ दिल बहुत मायूस था तो ज़िन्दगी रूठी हुई अब हवा से लड़ रहे हैं हम मुरीदों के चराग़ –विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की मुक्तक विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बुझ रहे थे रफ़्ता रफ़्ता जो फ़सीलों के चराग़
बुझ रहे थे रफ़्ता रफ़्ता जो फ़सीलों के चराग़
आपने आकर जलाये वो उमीदों के चराग़
दिल बहुत मायूस था तो ज़िन्दगी रूठी हुई
अब हवा से लड़ रहे हैं हम मुरीदों के चराग़
–विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की मुक्तक
विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ
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