डूब वासना में सब भूल, जीवन में बो बैठे शूल। तन मन पर नारी के घाव, देख रहे सब ले कर चाव।। कौन हरेगा उसकी पीर, लिखी राख से क्यों तकदीर। लो कान्हा फिर तुम अवतार, करो पापियों का संहार।। मौन त्याग दो अब भगवान, दुष्टों का होता गुणगान। बदल रहा सबका व्यवहार, रजत नहीं अच्छे आसार।। – अवधेश कुमार रजत अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
डूब वासना में सब भूल
डूब वासना में सब भूल,
जीवन में बो बैठे शूल।
तन मन पर नारी के घाव,
देख रहे सब ले कर चाव।।
कौन हरेगा उसकी पीर,
लिखी राख से क्यों तकदीर।
लो कान्हा फिर तुम अवतार,
करो पापियों का संहार।।
मौन त्याग दो अब भगवान,
दुष्टों का होता गुणगान।
बदल रहा सबका व्यवहार,
रजत नहीं अच्छे आसार।।
– अवधेश कुमार रजत
अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता
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