आह इतनी भरा नहीं करते प्यार को मकबरा नहीं करते ख़्वाब आकर चले गये जो शब फ़िक़्र उनकी ज़रा नहीं करते तोड़ के जो चले गये हैं दिल साथ उनके मरा नहीं करते याद कर के तिरी जफ़ायें अब ज़ख्म दिल का हरा नहीं करते घास पानी नहीं जहाँ पर तो जानवर भी चरा नहीं करते सर झुकाये जहाँ अँधेरे हों रात से वो डरा नहीं करते है सियासत यही सियासत में काम कोई खरा नहीं करते अब तो वक़्त के मरहम से भी ज़ख्म दिल के भरा नहीं करते दिल से न ‘शाद’ का हुआ फिर भी हम शिकायत करा नहीं करते – शाद उदयपुरी शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
आह इतनी भरा नहीं करते
आह इतनी भरा नहीं करते
प्यार को मकबरा नहीं करते
ख़्वाब आकर चले गये जो शब
फ़िक़्र उनकी ज़रा नहीं करते
तोड़ के जो चले गये हैं दिल
साथ उनके मरा नहीं करते
याद कर के तिरी जफ़ायें अब
ज़ख्म दिल का हरा नहीं करते
घास पानी नहीं जहाँ पर तो
जानवर भी चरा नहीं करते
सर झुकाये जहाँ अँधेरे हों
रात से वो डरा नहीं करते
है सियासत यही सियासत में
काम कोई खरा नहीं करते
अब तो वक़्त के मरहम से भी
ज़ख्म दिल के भरा नहीं करते
दिल से न ‘शाद’ का हुआ फिर भी
हम शिकायत करा नहीं करते
– शाद उदयपुरी
शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल
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