तुम जब हंसती हो तो
भर जाती है तुम्हारी आंखें
मन में ठहरे
दु:ख के कारण तो नहीं
हां जब नहीं रोती हो
तब भी ऐसा ही देखा है मैंने
तुम्हारे होठ भी सुलगने लगते हैं
इन आंसुओं की चपेट में आकर
देखो!
अपनी हथेलियां मत जला लेना
तुम इतना क्यूं रोती हो
क्या तुमने नहीं सुना
बार-बार रोने से
एक दिन खाली हो जाता है मन
सूख जाता है दिल का कुआ
तुम्हें सींचना भी तो है
अपनी नस्लों को |
इतना क्यूं रोती हो
तुम जब हंसती हो तो
भर जाती है तुम्हारी आंखें
मन में ठहरे
दु:ख के कारण तो नहीं
हां जब नहीं रोती हो
तब भी ऐसा ही देखा है मैंने
तुम्हारे होठ भी सुलगने लगते हैं
इन आंसुओं की चपेट में आकर
देखो!
अपनी हथेलियां मत जला लेना
तुम इतना क्यूं रोती हो
क्या तुमने नहीं सुना
बार-बार रोने से
एक दिन खाली हो जाता है मन
सूख जाता है दिल का कुआ
तुम्हें सींचना भी तो है
अपनी नस्लों को |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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