मेरे एक इशारे पर
क्यूं कर देती हो
अपने-आपको मेरे हवाले
कभी तो टूटने दो मेरे सब्र का बांध
क्यूं बरसाने लगती हो
अपना प्रेम
मुझ रेगिस्तान पर
मेरी यह प्यास तो
सांसों के साथ ही ख़त्म होगी
हां जानता हूं
तुम्हारा दर्द
हर बार कुर्बान जो कर देती हो
अपनी प्यास मेरी प्यास पर |
हां जानता हूं तुम्हारा दर्द
मेरे एक इशारे पर
क्यूं कर देती हो
अपने-आपको मेरे हवाले
कभी तो टूटने दो मेरे सब्र का बांध
क्यूं बरसाने लगती हो
अपना प्रेम
मुझ रेगिस्तान पर
मेरी यह प्यास तो
सांसों के साथ ही ख़त्म होगी
हां जानता हूं
तुम्हारा दर्द
हर बार कुर्बान जो कर देती हो
अपनी प्यास मेरी प्यास पर |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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