जीवन मुस्कराता था
इसके आस-पास
परिंदों के झुंड गाते थे
प्रेम के गीत
कितने हरे-भरे थे
वो खेत-खलिहान वो पेड़
पेड़ों पर लगे झूले
झूलों पर झूलता बचपन
चारों तरफ़ से इठलाती बलखाती
बतियाती राहें आती थीं इस तरफ़
अब सन्नाटा पसरा है
इसकी मुंडेर पर
कोई भी नहीं आता भूले से भी
इसके सूनेपन से बतियाने
तरस गया है
उन आवाज़ों को
जिन्हें सींचा करता था
ये सूखा कुआ |
कुए का दु:ख
जीवन मुस्कराता था
इसके आस-पास
परिंदों के झुंड गाते थे
प्रेम के गीत
कितने हरे-भरे थे
वो खेत-खलिहान वो पेड़
पेड़ों पर लगे झूले
झूलों पर झूलता बचपन
चारों तरफ़ से इठलाती बलखाती
बतियाती राहें आती थीं इस तरफ़
अब सन्नाटा पसरा है
इसकी मुंडेर पर
कोई भी नहीं आता भूले से भी
इसके सूनेपन से बतियाने
तरस गया है
उन आवाज़ों को
जिन्हें सींचा करता था
ये सूखा कुआ |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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