उम्र ढलान पर है
बेशुमार ख़्वाब
आंखों में जगमगाते हैं
उड़ाते हैं मज़ाक बेबसी का
यही तमाशा है ज़िन्दगी का
उम्र के इस पड़ाव पर
जो छूट गया
जो रूठ गया
वो और उसकी खुशियां
मुझसे थीं
वो मजबूरियां
वो दूरियां
वो तड़पना
वो लड़ना-झगड़ना
वो मिलने का सुकून
वो उम्र का जुनून
वो दुनिया की नज़रें
अब भी हैं
मगर तुम नहीं |
मगर तुम नहीं
उम्र ढलान पर है
बेशुमार ख़्वाब
आंखों में जगमगाते हैं
उड़ाते हैं मज़ाक बेबसी का
यही तमाशा है ज़िन्दगी का
उम्र के इस पड़ाव पर
जो छूट गया
जो रूठ गया
वो और उसकी खुशियां
मुझसे थीं
वो मजबूरियां
वो दूरियां
वो तड़पना
वो लड़ना-झगड़ना
वो मिलने का सुकून
वो उम्र का जुनून
वो दुनिया की नज़रें
अब भी हैं
मगर तुम नहीं |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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